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कुदरत के करिश्मे भी दिखते हैं ‘छोटे तिब्बत’ में

04:05 AM Feb 28, 2025 IST
कुदरत के करिश्मे भी दिखते हैं ‘छोटे तिब्बत’ में
टाइगर प्वांइट
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शिखर चंद जैन
हमारा देश न सिर्फ़ क्षेत्रफल में विशाल है बल्कि इसका हृदय भी विशाल है। हमने दुनिया के कई देशों की संस्कृति, भाषाओं और रीति-रिवाजों के साथ वहां के निवासियों को भी अपना लिया है। बात करते हैं देश के ऐसे गांव के बारे में जो है तो तिब्बती बहुल, मगर अहसास भारत में करवाता है।
पहाड़ी पर बसा गांव
तिब्बत तो अलग देश है और भारत के बाहर है। लेकिन छत्तीसगढ़ में मैनपाट एक ऐसी ही खूबसूरत जगह है। उत्तर छत्तीसगढ़ में मैनपाट की पहाड़ी पर बसा है छोटा तिब्बत। मैनपाट अंबिकापुर से करीब 55 किलोमीटर दूरी पर स्थित है और विंध्य पर्वतमाला पर स्थित है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 3,780 फुट है। टाइगर प्वाइंट मैनपाट में प्रमुख आकर्षण का केंद्र है। स्थानीय लोगों का कहना है कि कई साल पहले यहां बाघ देखे जाते थे, इस वजह से इसका नाम टाइगर प्वाइंट पड़ा।
तिब्बती संस्कृति की छाप
यहां आने के बाद सैलानियों को बुद्ध की शरण में आने का भी अहसास होता है। ऊंचाई पर स्थित सपाट मैदान और चारों तरफ खुली वादियां। बौद्ध भिच्छुओं के शांत सौम्य चेहरों के साथ कालीन बुनते तिब्बतियों को देखकर ऐसा महसूस होता है कि हम नाथूला दर्रे को पार कर तिब्बत के किसी गांव में पहुंच गए हैं। छोटे-छोटे साफ-सुथरे मकान और चारों ओर हरियाली उसकी सुंदरता बढ़ाती है। यह पहचान है मैनपाट के तिब्बती और उनके कैंपों की। साल 1962 में तिब्बत पर चीनी कब्जे और वहां के धर्मगुरु दलाई लामा सहित लाखों तिब्बतियों के निर्वासन के बाद भारत सरकार ने उन्हें अपने यहां शरण दी थी। इसी दौरान तिब्बत के वातावण से मिलते-जुलते मैनपाट में एक तिब्बती कैंप बसाया गया था, जहां तीन पीढ़ियों से तिब्बती शरणार्थी रह रहे हैं। तिब्बतियों के बसे होने की वजह से यहां के ज्यादातर मठ-मंदिरों, खान-पान और संस्कृति में भी तिब्बत की छाप स्पष्ट महसूस की जा सकती है।

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बौद्ध मंदिर

धार्मिक प्रवृत्ति के निवासी
यहां के बौद्ध मंदिर में पहुंचकर मन को शांति मिलती है। तिब्बती शरणार्थियों की जीवन शैली हर किसी को आकर्षित करती है। यहां तिब्बतियों के सात कैंप हैं। इन सातों कैंपों में साठ के दशक में तिब्बतियों द्वारा छोटे-छोटे मकान बनाए गए थे। यहां सभी कैंपों में बौद्ध मंदिर हैं, जहां सुबह से लेकर देर शाम तक समाज के बुजुर्ग पूजा-अर्चना में लगे रहते हैं। मैनपाट के कमलेश्वरपुर, रोपाखार क्षेत्र में स्थानीय लोगों के साथ मिलकर अपने पर्व मनाने वाले तिब्बतियों की पारंपरिक वेशभूषा और वाद्य यंत्र विशेष अवसरों पर ही नजर आते हैं। तिब्बतियों का मकान, घरों के सामने लहराते झंडे और मठ-मंदिर अनायास ही तिब्बत की याद दिला देते हैं।
बिना भूकंप हिलती जमीन
मैनपाट में एक खास आकर्षण का केंद्र है, जलजली । यहां की जमीन बिना भूकंप के हिलती है। यहां पर अगर जमीन पर उछलते हैं तो जमीन हिलती है। आपको कुदरत के इस करिश्मे को जरूर देखना चाहिए।

उल्टापानी

पानी का बहाव उल्टी तरफ़
मैनपाट के ‘उल्टापानी’ में आकर सैलानी काफी अचंभित हो जाते हैं क्योंकि यहां पर पानी का बहाव ऊंचाई की तरफ है साथ ही यहां पर सड़क पर खड़ी न्यूट्रल गाड़ी पहाड़ी की ओर चली जाती है। यहां पानी का बहाव विपरीत दिशा में होने के कारण इस जगह का नाम उल्टापानी रखा गया है।

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