कुंडली
बलराम अग्रवाल
बिटिया का बायो-डाटा और फोटो उसके पिता ने लड़के की मां के हाथ में थमा दिया। फोटो को अपने पास रोककर बायो-डाटा उसने पति की ओर बढ़ा दिया। पति ने सरसरी तौर पर उसको पढ़ा और कन्या के पिता से पूछा, ‘कुंडली लाए हैं?’
‘हां जी, वह तो मैं हर समय ही अपने साथ लिए घूमता हूं।’ वह बोला।
‘वह भी दे जाइए।’ उसने कहा।
‘सॉरी भाईसाहब!’ वह बोला, ‘उसे मैं देकर नहीं जा सकता। जिन पंडितजी से उसका मिलान कराना हो, या तो उन्हें यहां बुला लीजिए या मुझे उनके पास ले चलिए।’
लड़के के पिता और माता दोनों को उसकी यह बात एकदम अटपटी लगी। वे आश्चर्य से उसका मुंह देखने लगे।
‘वैसे, जब से बेटी के लिए वर की तलाश में निकलना शुरू किया है, मैं अपनी भी कुंडली साथ में रख लेता हूं।’ उनकी मुख-मुद्रा को भांपकर लड़की का पिता बोला, ‘आप लोग अपनी कुंडली इस मेज पर फैला लीजिए, मैं भी अपनी को आपके सामने रख देता हूं। अगर हम लोगों की कुंडलियां आपस में मेल खा गई तो मुझे विश्वास है कि बच्चों की कुंडलियां भी मेल खा ही जाएंगी।’
इतना कहकर उसने अपनी जेब में हाथ डाला और बिटिया के विवाह पर खर्च की जाने वाली रकम लिखा कागज का एक पुर्जा, सोफे पर कुंडली मारे बैठे उस दम्पति की ओर बढ़ा दिया।