किम जोंग पर ट्रंप की चुप्पी के मायने
सवाल यह है, ट्रम्प किम से इतना डरते क्यों हैं? क्या उसका मुंहफट होना ट्रम्प को डराता है, या कि सैन्य दुस्साहस? उत्तर कोरिया, 2022 से रूस-यूक्रेनी युद्ध में शामिल है, जब उसने स्वघोषित डोनेट्स्क पीपुल्स रिपब्लिक और लुगांस्क पीपुल्स रिपब्लिक को मान्यता देकर रूस का समर्थन किया था।
पुष्परंजन
क्या अमेरिका को उत्तर कोरिया के साथ बातचीत फिर से शुरू करनी चाहिए? ठीक एक माह पहले 7 फरवरी को जापानी प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा ने डोनाल्ड ट्रम्प को सुझाव दिया था, कि वो उत्तर कोरियाई तानाशाह किम जोंग उन से दोबारा बात करें। लेकिन, ज़ेलेन्स्की से जो अनुभव ट्रम्प ने प्राप्त किया है, उस कड़वे अनुभव के आधार पर ट्रम्प कम से कम किम से तुरंत नहीं उलझेंगे। ज़ेलेन्स्की, चाहे आने वाले दिनों में नरम पड़ जाएं, या खनिज समझौता कर लें, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति की जिस तरह आमने-सामने हेकड़ी उतारी है, उससे उनका प्रभामंडल निस्तेज हुआ है। अटलांटिक से लेकर, एशिया-प्रशांत और मिडल ईस्ट तक कुछ शासन प्रमुखों का हौसला बुलंद हुआ है, कि व्हाइट हाउस से दबो नहीं। तुर्की-ब-तुर्की जवाब दो।
7 फरवरी, 2025 को जापानी प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने उत्तर कोरियाई तानाशाह किम जोंग उन के साथ अपने व्यक्तिगत संबंधों पर जोर देते हुए कहा, कि ‘वह हम सबों के लिए बहुत बड़े धरोहर हैं। मैं उनसे मिलता रहता हूं।’ इशिबा के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में ट्रम्प ने यह भी दावा किया कि उनके पहले कार्यकाल के दौरान किम के साथ उनकी बातचीत ने कोरियाई प्रायद्वीप पर युद्ध को रोक दिया था। चाहे यह सच हो, या नहीं, ट्रम्प ने निश्चित रूप से अपने पूर्ववर्ती की तुलना में उत्तर कोरिया के साथ बेहतर व्यवहार किया। पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने सुंदर भाषण दिए, लेकिन पूर्वी एशिया के कई देशों, जिनमें अमेरिकी सहयोगी और साझेदार भी शामिल हैं, के सामने वे कमज़ोर नज़र आए। आठ साल तक उन्होंने उत्तर कोरिया के बारे में कुछ नहीं किया, बल्कि बराक ने इसे ‘रणनीतिक धैर्य’ की नीति कहा था।
इसका फायदा उठाकर फ्योंगयांग ने अपने मिसाइल और परमाणु हथियार कार्यक्रमों को रफ्तार दे दी। ट्रम्प, किम जोंग उन से सीधा उलझने से बचते रहे। ट्रम्प ने किम से तीन बार मुलाकात की : 2018 में सिंगापुर में, 2019 में हनोई में, और 2019 में ही उत्तर और दक्षिण कोरिया को अलग करने वाले विसैन्यीकृत क्षेत्र में। फोटोऑप तक सीमित ये बैठकें, इसलिए विफल रहीं क्योंकि वे खराब तरीके से तैयार की गई थीं। इसमें ‘परमाणु निरस्त्रीकरण’ का कोई ठोस लक्ष्य निर्धारित नहीं किया गया था।
उत्तर कोरिया अपने परमाणु हथियार, या मिसाइल कार्यक्रमों को वैसे भी नहीं छोड़ने वाला है। उत्तर कोरिया के हवाले से कुछ विशेषज्ञों का आकलन है कि ट्रंप अपने कूटनीतिक टूलबॉक्स से धूल झाड़ सकते हैं, और किम जोंग उन के साथ एक और शिखर सम्मेलन की कोशिश कर सकते हैं। लेकिन किम, परमाणु राज्य का दर्जा पाने की महत्वाकांक्षा त्याग नहीं सकते। पिछले महीने ‘नई ह्वासोंग-19 अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल’ के परीक्षण के बाद, उत्तर कोरिया ने पुष्टि की, कि देश की परमाणु शक्ति को मजबूत करने की नीति कभी नहीं बदलेगी। 2023 में, उत्तर कोरिया ने परमाणु शक्ति को मजबूत करने की अपनी नीति को सुदृढ़ करने के लिए अपने संविधान में संशोधन किया। उसने स्पष्ट कर दिया कि परमाणु संपन्न देश बनने की उसकी स्थिति ‘अपरिवर्तनीय’ बनी हुई है।
पिछले महीने, नौ वर्षों में पहली बार, दक्षिण कोरिया और अमेरिका के रक्षा प्रमुखों के बीच की सुरक्षा परामर्श बैठक के बाद जारी किए गए एक संयुक्त बयान में उत्तर कोरिया के परमाणु निरस्त्रीकरण को साझा लक्ष्य के रूप में छोड़ दिया गया। यह एक संभावित संकेत है, कि उत्तर कोरिया का परमाणु निरस्त्रीकरण अब वास्तविक रूप से प्राप्त करने योग्य नहीं है। यदि किम, ट्रंप के साथ बैठते हैं, तो वे उत्तर कोरिया को परमाणु संपन्न देश के रूप में अमेरिका द्वारा मान्यता दिए जाने पर बातचीत करने का प्रयास करेंगे, तथा ‘परमाणु निरस्त्रीकरण’ के बजाय ‘परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए बाद में प्रदत रियायतें मांगेंगे, जो उनके पिछले शिखर सम्मेलनों के दौरान चर्चा में था। कोरिया विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय एकीकरण के लिए कन्वर्जेंस संस्थान के निदेशक नाम सुंग-वुक का कहना है, ‘बदले में ट्रम्प इसकी गारंटी ले सकते हैं, कि अमेरिका की मुख्य भूमि तक पहुंचने में सक्षम उत्तर कोरियाई मिसाइलों का मुंह किम घुमा दें।’
सवाल यह है, ट्रम्प किम से इतना डरते क्यों हैं? क्या उसका मुंहफट होना ट्रम्प को डराता है, या कि सैन्य दुस्साहस? उत्तर कोरिया, 2022 से रूस-यूक्रेनी युद्ध में शामिल है, जब उसने स्वघोषित डोनेट्स्क पीपुल्स रिपब्लिक और लुगांस्क पीपुल्स रिपब्लिक को मान्यता देकर रूस का समर्थन किया था। उत्तर कोरिया ने रूस में अपने सैन्य कर्मियों को भेजा, जिन्होंने रूसी वर्दी में, और रूसी कमान के तहत रूस के लिए यूक्रेन के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उत्तर कोरिया का हथियार उद्योग लहलहा रहा है। नवंबर, 2024 के मध्य तक, यूक्रेन के साथ संघर्ष में रूसी सशस्त्र बलों को मजबूत करने के लिए 50 उत्तर कोरिया निर्मित एम-1989 कोकसन स्व-चालित हॉवित्जर, और लगभग 20 एम-1991 शॉर्ट-रेंज मिसाइल सिस्टम रूस को दिए गए थे।
ट्रम्प अपने दूसरे कालखंड में तानाशाहों से उलझते-उलझते खुद भी डिक्टेटर की भूमिका में आते दिखने लगे हैं। उन्होंने जब यह कहा, कि ‘डिक्टेटर’ पुतिन नहीं, ज़ेलेन्स्की है, तब क्रेमलिन को अच्छा लगा था। ओवल ऑफिस में जो कुछ ट्रम्प-ज़ेलेन्स्की के बीच हुआ, पुतिन उस दिन से सॉफ्ट हैं। लेकिन, क्या मालूम इस ‘नूरा कुश्ती’ की पटकथा पहले से लिखी गई हो? यह सब देखते हुए, किम जोंग उन में भी रणनीतिक बदलाव की ज़रूरत आन पड़ी है। चीन, ट्रम्प के टैरिफ़ युद्ध से निपटने के वास्ते किसी भी स्तर पर जाने के लिए ताल ठोक रहा है, ऐसे में किम जोंग उन जैसा तानाशाह, शी चीन फिंग को चाहिए ही। पुतिन को अत्यधिक महत्व देने को लेकर शी और किम जोंग उन के बीच दूरियां लोगों ने महसूस की थी। अपरोक्ष रूप से अमेरिकन्स ने भी शी को इस मुद्दे पर समझाने की कोशिश की थी।
वर्ष 2018 से किम जोंग उन की विदेश यात्राओं पर ग़ौर कीजिये, वह रूस, केवल एक बार गए हैं, और चीन चार बार। इससे अंदाज़ा लगा था, कि रिमोट कंट्रोल प्रेसिडेंट शी के पास है। लेकिन, 2023 -24 के दौरान पुतिन-किम शिखर बैठकों ने द्विपक्षीय सहयोग को नए स्तरों पर पहुंचा दिया। इन निराशाओं के बावजूद, चीन, उत्तर कोरिया का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना हुआ है, जो कोयला और वस्त्र सहित उसके 90 प्रतिशत निर्यात को खरीदता है। शी की मैच्योर कूटनीति है कि उन्होंने रूस और उत्तर कोरिया के साथ अपने संबंधों को तल्ख़ नहीं होने दिया। ट्रम्प के टैरिफ वॉर के बाद, इन संबंधों को नए सिरे से परिभाषित करने की ज़रूरत है!
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।