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काम के घंटे और गुणवत्ता का काम

04:00 AM Feb 03, 2025 IST
काम के घंटे और गुणवत्ता का काम
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जन संसद की राय है कि काम के घंटों के बजाय हमें बेहतर कार्य परिस्थिति बनाने पर ध्यान देना चाहिए। जो गुणवत्ता की उत्पादकता को बढ़ावा दे। प्राथमिकता शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य भी हो।

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संतुलित कार्य संस्कृति
लंबे समय तक काम करने के बजाय उसकी गुणवत्ता और प्रभावशीलता अधिक महत्वपूर्ण है। लंबे कार्य घंटों का सीधा असर मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। केवल समय बढ़ाने से प्रगति की गारंटी नहीं होती; इसके बजाय, काम की उत्पादकता और संतुलन पर ध्यान देना आवश्यक है। कोविड-19 महामारी ने यह साबित किया कि कम घंटों में भी कार्यक्षमता बनाए रखी जा सकती है। इसलिए, कंपनियों को अपने कर्मचारियों के लिए संतुलित कार्य संस्कृति विकसित करनी चाहिए, जो संगठन और कर्मचारियों दोनों के लिए लाभकारी हो।
आर.के. जैन, बड़वानी, म.प्र.

उत्पादकता पर असर
विश्व में बड़े संघर्ष के बाद कामकाजी लोगों ने सप्ताह में 48 घंटे का काम और एक दिन विश्राम का हक हासिल किया है। भारत में फैक्टरी एक्ट 1948 के तहत ऐसे नियमों को लागू किया गया। विकसित देशों में तो सप्ताह में केवल 40 घंटे ही काम किया जाता है। आज कुछ उद्योगपति काम के घंटों को बढ़ाकर 70 और 90 घंटे करना चाहते हैं। इससे काम की गुणवत्ता और श्रमिकों के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। 48 घंटे में ताजगी और प्रसन्नता के साथ भी उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है।
देवी दयाल दिसोदिया, फरीदाबाद

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चुनौतियां और समाधान
कुछ उद्योगपतियों ने सप्ताह में 70 या 90 घंटे काम करने की सलाह दी। हालांकि, काम के घंटे और गुणवत्ता दोनों महत्वपूर्ण हैं। अधिक काम के घंटे उत्पादकता बढ़ा सकते हैं, लेकिन यह गुणवत्ता के नुकसान पर नहीं होना चाहिए। लंबे समय तक काम करने से थकान और एकाग्रता में कमी हो सकती है। इसलिए, काम के घंटे और नियमित ब्रेक के बीच संतुलन बनाए रखना जरूरी है। संस्थाओं को कर्मचारियों के परिवार की भी चिंता करनी चाहिए, क्योंकि परिवार को समय देना उतना ही महत्वपूर्ण है।
पूनम कश्यप, नयी दिल्ली

गुणवत्ता पर असर
सप्ताह में 70 से 90 घंटे काम करने का प्रस्ताव कंपनियों के प्रबंधन के लिए सही हो सकता है, लेकिन यह कर्मचारियों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के साथ अन्याय होगा। अत्यधिक काम का बोझ मानसिक समस्याएं उत्पन्न कर सकता है और कर्मचारियों को परिवार को समय नहीं देने देता। कभी-कभी जरूरी परिस्थितियों में युवा स्टाफ स्वेच्छा से अतिरिक्त काम कर सकता है, लेकिन उम्रदराज कर्मचारियों से यह अपेक्षा उचित नहीं। अत्यधिक काम की अपेक्षा से युवाओं की गुणवत्ता भी प्रभावित होगी, जो कंपनियों के लिए हानिकारक हो सकता है।
अमरपाल सिंह वर्मा, हनुमानगढ़, राज

कार्य और स्वास्थ्य
अगर कोई 10 घंटे काम करता है, तो लगता नहीं कि उसकी काम की गुणवत्ता पर नकारात्मक असर पड़ेगा। 24 घंटे में 10 घंटे काम करके भी बचे समय में आराम, परिवार को समय और व्यायाम किया जा सकता है। काम से बीमारियां नहीं होतीं, जब तक तनाव न लिया जाए। आलस्य से बीमारियां होती हैं। हमारे देश में आराम हराम माना जाता है। काम के घंटों पर विवाद हो सकता है, लेकिन अगर वैज्ञानिकों ने घंटों काम नहीं किया होता, तो नई तकनीक नहीं विकसित हो पाती। संतुलन बनाए रखना जरूरी है।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर

पुरस्कृत पत्र

संतुलन जरूरी
मनुष्य को अपने सुख-दुख साझा करने के लिए संग-साथ की आवश्यकता होती है– चाहे वह अपनों का हो या परायों का। यदि कार्य के घंटे बढ़ाए जाते हैं, तो उत्पादकता में वृद्धि हो सकती है, लेकिन कर्मचारी का सामाजिक मेल-मिलाप घट जाएगा, जिससे स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है और काम पर ध्यान कम हो सकता है। इससे उत्पाद की गुणवत्ता और ग्राहक संतुष्टि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। अत: कार्य के घंटों तथा गुणवत्तापूर्ण काम के मध्य इस प्रकार संतुलन कायम किया जाये कि न कर्मचारी पर मानसिक दबाव पड़े, न गुणवत्ता पर उंगली उठे। इसलिए कार्य घंटे और गुणवत्ता में संतुलन बनाए रखना जरूरी है।
कृष्णलता यादव, गुरुग्राम

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