कामयाबी का जनोत्सव
सरकारी आंकड़ों पर विश्वास करें तो इस महाकुंभ में 66 करोड़ से अधिक तीर्थयात्रियों ने गंगा-यमुना व अदृश्य सरस्वती के संगम पर महाकुंभ के दौरान डुबकी लगायी। एक भगदड़ की घटना में कुछ श्रद्धालुओं का असमय काल-कवलित होना दुखद ही था। कुछ अग्निकांड भी हुए। लेकिन यदि बात करोड़ों श्रद्धालुओं के संगम में स्नान व उनके आने-जाने व रहने की व्यवस्था की हो तो योगी सरकार अपनी पीठ थपथपा सकती है। रूस-अमेरिका जैसी महाशक्तियों की आबादी से अधिक जनसंख्या का प्रबंधन निश्चय ही एक बड़ी चुनौती थी। ऐसे दौर में जब उपभोक्ता संस्कृति सिर चढ़कर बोल रही है, तब सनातन संस्कृति का ऐसा उफान चौंकाता है। जिसमें लोग तमाम कष्ट सहकर संगम में डुबकी लगाने को आतुर दिखे। त्याग-संयम से परिचित कराना कुंभ संस्कृति का उद्देश्य भी रहा है। इस तरह हमने अपने पुरखों की गौरवशाली विरासत का सम्मान किया। जिसमें सदियों से करोड़ों लोग बिना चिट्ठी-पत्री के स्वत:स्फूर्त भाव से कुंभ के मेले में जुटते रहे हैं। भारतीय संस्कृति में ऐसी क्या खासियत है? महाकुंभ जैसे इतने बड़े आयोजन कैसे सफलतापूर्वक होते हैं? यह देखने पूरी दुनिया के जिज्ञासु, विभिन्न धर्मों के अनुयायी, फोटोग्राफर और पत्रकार सदियों से महाकुंभ में जुटते रहे हैं। महाकुंभ के सफल आयोजन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि महाकुंभ ने पूरी दुनिया को युग-परिवर्तन की आहट और विशाल आयोजन की क्षमता से रूबरू कराया है। महत्वपूर्ण यह है कि तीर्थयात्रियों ने जिस तरह दिल खोल कर खर्च किया, वो निश्चय ही उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था का तारणहार बनेगा। बताते हैं कि इससे प्रदेश की जीडीपी में करीब साढ़े चार लाख करोड़ रुपये का इजाफा होगा। जो देश की तमाम देशी-विदेशी इनवेस्ट समिटों से कहीं ज्यादा ठोस आय का स्रोत बना है। कई गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड इस महाकुंभ के नाम हुए। वीरवार को तीन वर्ल्ड रिकॉर्ड प्रमाणपत्र मुख्यमंत्री योगी को सौंपे गए। विपक्ष, खासकर सपा व कांग्रेस कुंभ आयोजन को लेकर हमलावर रहे हैं। वहीं शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने महाकुंभ के समापन पर कहा कि ये सरकारी महाकुंभ है। असली कुंभ तो माघ पूर्णिमा को ही संपन्न हो चुका था।
इस बार के महाकुंभ को टेक्नोलॉजी के महाकुंभ के रूप में भी याद किया जाएगा। महाकुंभ में विशेष एल्गोरिदम के जरिये इस्तेमाल पांच सौ एआई कैमरे क्राउड डेंसिटी व फैशियल रिकग्निशन के लिये इस्तेमाल किए गए। जिसके जरिये करोड़ों श्रद्धालुओं की गिनती संभव हुई। वहीं बिछुड़ों को परिजनों से मिलाने, आपराधिक गतिविधियों पर अंकुश लगाने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। निस्संदेह, इतने बड़े जनसैलाब को संभालना किसी भी सरकार के लिये बड़ी चुनौती होती है। लेकिन भविष्य में महाकुंभ के आयोजन के लिये प्रयागराज महाकुंभ के अनुभवों से सबक लेने की जरूरत है। इस बात का वैज्ञानिक अध्ययन होना चाहिए कि भगदड़ को कैसे टाला जाए। आखिर क्यों दो सौ- तीन सौ किलोमीटर के जाम लगते रहे हैं। कैसे ट्रेनों का संचालन बिना किसी व्यवधान के किया जाए। हालांकि, 16 नई ट्रेनें चलाने की बात कही गई, लेकिन तमाम स्टेशनों पर ट्रेन में चढ़ने के लिये मारामारी होती रही है। दिल्ली रेलवे स्टेशन का हादसा इसका ज्वलंत उदाहरण है। महाकुंभ के सफल आयोजन ने बताया है कि देश में धार्मिक पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। देश में महाकाल कोरिडोर व काशी कोरिडोर की तर्ज पर चारों कुंभ स्थलों पर संरचना निर्माण की दिशा में सोचा जाना चाहिए। प्रयागराज महाकुंभ से प्रेरित होकर महाराष्ट्र सरकार ने नासिक में 2027 में होने वाले सिंहस्थ कुंभ की तैयारियों की शुरुआत कर दी है। बहरहाल, महाकुंभ को सामाजिक समरसता के उत्सव के रूप में भी याद किया जाएगा, जहां जाति, धर्म, क्षेत्र व भाषा की वर्जनाएं टूटती नजर आई। महत्वपूर्ण यह भी कि तीर्थयात्री तमाम कष्टों को सहते हुए सनातन संस्कृति में अटूट आस्था दिखाते रहे। महाकुंभ के समापन पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का झाडू लेकर सफाई में जुटना और सफाईकर्मियों के बीच अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों के साथ भोजन करना एक प्रशंसनीय प्रयास हैं। वहीं कुंभ आयोजन की रीढ़ रहे पुलिसकर्मियों, सुरक्षाकर्मियों, स्वास्थ्यकर्मियों, रोडवेज कर्मियों, सफाईकर्मियों को बोनस, छुट्टी और स्मृतिचिन्ह व प्रशस्ति-पत्र देना एक अनुकरणीय पहल है। इससे ऐसे आयोजनों के लिये नई ऊर्जा मिलेगी।