कहानियों में संस्कृति का अनदेखा सच
राजकिशन नैन
‘शहीदे आजम का अज्ञातवास’ डॉ. धर्मचन्द्र विद्यालंकार का ताजा कहानी-संग्रह है, जिसमें उन्होंने देश के सामाजिक जीवन और सांस्कृतिक परिवेश का सही चित्रांकन किया है। इससे पूर्व उनके ‘पगड़ी संभाल जट्टा’, ‘चौबीसी का चबूतरा,’ ‘सांझी विरासत’ तथा ‘रोटी और रिश्ते’ कथा-संग्रह चर्चित रहे हैं, जिनमें देश के सर्वहारा वर्ग की दुर्दशा का खुलासा किया गया है।
डॉ. विद्यालंकार मूलतः राष्ट्रीय-सांस्कृतिक चेतना के कवि और निबंधकार हैं। इनके लेखन में बौद्धिकता एवं भावना का सहज सुयोग है। ‘शहीदे आजम का अज्ञातवास’ कहानी अलीगढ़ जिले के गांव शादीपुर से संबंधित हैं, जहां सरदार भगतसिंह ने एक वर्ष तक गुप्तवास किया था। ठाकुर टोडरमल ने उन्हें दस बीघा कृषि-भूमि मदद के लिए दी थी। भगत सिंह वहां अंग्रेजी भाषा के अध्यापक के नाते रहे थे। पढ़ाई के अलावा वे बच्चों को फुटबाल और हॉकी खिलाया करते और उन्हें अस्त्र-शस्त्रों का संचालन भी सिखाया करते। यही नहीं, भगतसिंह ने किसानों को नील बनाना भी सिखाया था।
‘सात जात के लोग’ कहानी में आदमी के एक जगह से दूसरी जगह बसने के विकास क्रम को दर्शाया गया है। अकाल के दिनों अन्न-पानी की कमी के चलते लोग-बाग कहीं से उठकर कहीं भी जाकर बस जाया करते। उत्तर-मध्यकाल में हरियाणा और राजस्थान से उजड़कर जाट क्षत्रियों के हजारों गांव यमुना और गंगा की काछरीय यानी खादर भूमि पर जा बसे थे। वर्तमान का यह उर्वर गांगेय एवं यामुनेय प्रदेश एक तरह से हरियाणा का ही विस्तार है।
‘वाक्छल’ एक ऐसे युवक की कहानी है, जो जन्मजात योग्यता का प्रबल पक्षधर था और राष्ट्रीय जीवन में सांस्कृतिक क्रान्ति लाना चाहता था। किंतु सपने टूटने पर जब उसकी आंख खुली तो उसने पाया कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की स्थापना के नाम पर उसके और देश के साथ वाक्छल किया गया है।
‘विचलन’, ‘परित्यक्ता या छिन्नलता’ और ‘अपराजिता’ सरीखी कहानियों में स्त्रियों की प्रताड़ना, उनके शोषण और उनकी विवशताओं को मर्मस्पर्शी ढंग से उकेरा गया है। जिस धरती पर ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः’ को आदर्श मानकर नारियों को देवीय सम्मान प्राप्त रहा हो, वहीं पर वे पति और पुत्रों की उपेक्षा का शिकार होकर जी रही हैं। नारी-चेतना को जागृत करने के आन्दोलन बेमानी सिद्ध हो रहे हैं।
‘दूसरा देस’ एक ऐसे युवक की कहानी है जिसके पूर्वज् विभाजन के दिनों पाकिस्तान से उजड़कर भारत आये थे। बड़ा होने पर जब वह अपने पुरखों के गांव को देखने पाकिस्तान गया तो कई चीजों को देखकर विस्मित रह गया। लायलपुर में उसने ‘खटकड़ चक्क’ नाम का वह ‘खिता’ देखा जहां भगतसिंह के पुरखों को नहरी खेती की जमीन अलॉट हुई थी। उसने पाया कि पंजाबी जैसी मीठी व प्यारी जुबान को भूलकर लोग उर्दू को ज्यादा महत्व देने लग गए हैं। बाकी की 14 कहानियां भी देखने योग्य हैं।
पुस्तक : शहीदे आजम का अज्ञातवास लेखक : डॉ. धर्मचंद्र विद्यालंकार प्रकाशक : अनीता पब्लिशिंग हाउस, गाजियाबाद पृष्ठ : 183 मूल्य : रु. 545.