कम न हो पाएंगे यमुना के दु:ख-दर्द
आंकड़ों, बजट और आरोपों में दिमाग खपाने से यमुना का कुछ उद्धार होने से रहा, इसके किनारों पर हरियाली हो, अतिक्रमण साफ हो, इसकी धार को बगैर रोके-टोके बहने का मौका मिले। बस इतना कर लीजिए एसटीपी जैसे खर्चे कुछ कम हो जाएंगे।
पंकज चतुर्वेदी
पहली बार में दिल्ली की यमुना पर सफेद झाग नजर आते हैं। थोड़ा करीब से देखें तो पानी निपट काला नजर आता है। खासकर कालिंदी कुंज पर तो लगता था कि यह नदी नहीं, बर्फ का ढेर हो। दिल्ली विधानसभा चुनाव में यमुना को साफ करने के मुद्दे पर खूब चर्चा हुई, होनी भी चाहिए थी क्योंकि केजरीवाल सरकार ने इस बारे में बहुत से दावे किए लेकिन नतीजा सिफर रहा था। लेकिन आश्चर्य तब हुआ जब चुनावी नतीजे आते ही, बगैर सरकार के गठन के यमुना में कुछ ऐसी मशीन तैरती दिखीं जो कचरा साफ कर रही थीं। वैसे तो ऐसा कचरा यदि कोई भी नदी अविरल रहे और उसमें बरसात के दिनों में दो-चार बाढ़ आ जाये तो खुद-ब-खुद किनारे लग जाता है। सभी जानते हैं कि आप सरकार के दौरान दिल्ली में आधा राज तो ‘लपटन साब’ अर्थात लेफ्टिनेंट गवर्नर का चलता रहा है। फिर यह मशीन उतारने के लिए सरकार बदलने का इंतज़ार क्यों किया गया?
कड़वा सच तो यह है कि यमुना के दर्द से जब जनता बेपरवाह हुई और महज छठ के आसपास इसकी याद आने लगी तो राजनीतिक दलों ने भी इसे गम्भीरता से लेना छोड़ दिया। यह समझना होगा कि बीते दो दशकों से दिल्ली में हरियाणा से दिल्ली आने वाली यमुना में साल में कम से कम 10 बार अमोनिया की मात्रा बढ़ती है। यह भी समझना होगा कि साल दर साल यमुना में पानी की मात्रा कम हो रही है, जबकि उसके किनारे बसे शहरों-बस्तियों की आबादी बढ़ रही है। जाहिर है कि वहां से निकलने वाले जल-मल में भी वृद्धि हो रही है और कड़वा सच यह है कि यह आधे अधूरे ट्रीटमेंट के बाद यमुना में मिल रहा है। एक तरफ हम यमुना से ज्यादा पानी ले रहे हैं, दूसरा हम इसमें अधिक गंदगी डाल रहे हैं, तीसरा इसमें पानी कम हो रहा है। वैसे दिल्ली की रेखा गुप्ता सरकार ने इस साल यमुना के मद में 500 करोड़ का प्रावधान रखा है लेकिन कोई ठोस योजना प्रस्तुत की नहीं।
लेकिन यमुना की जमीनी हकीकत को परे रखकर जिस तरह अहमदाबाद के साबरमती फ्रंट की तर्ज पर दिल्ली की यमुना को दमकाने की योजनाएं सरकार के खजाने से बाहर आईं उससे जाहिर हो गया कि यमुना में निर्मल जल और विशाल जलनिधि के बनिस्बत उसकी भूमि छुड़ाकर उसका व्यावसायिक इस्तेमाल करने की मंशा है। वैसे एनजीटी सन् 2015 में ही दिल्ली के यमुना तटों पर निर्माण पर पाबंदी लगा चुका है लेकिन इससे बेपरवाह सरकारें मान नहीं रही। अभी एक साल के भीतर ही लाख आपत्तियों के बावजूद सराय कालेखां के पास ‘बांस घर’ के नाम से केफेटेरिया और अन्य निर्माण हो गए। और अब यही सराय कालेखां के सामने 22 एकड़ का जो रिवर फ्रंट बनाने की बात है, वह भी एनजीटी के आदेश की खुली अवहेलना ही होगा।
दिल्ली में यमुना कोई 52 किलोमीटर का सफर तय करती है। सराय कालेखां तक आने में उसका आधा सफर हो जाता है और इसमें ही अधिकांश नाले, औद्योगिक कचरा आदि मिलता है। आईटीओ पुल पर पहुंचते ही यह मृतप्राय हो जाती है। इसमें घुलित ऑक्सीजन की मात्रा नहीं मिलती है। यानी ऑक्सीजन शून्य है। किसी भी नदी की जीवनधारा के लिए घुलित ऑक्सीजन अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि दिल्ली के किसी भी हिस्से में यमुना जल मनुष्यों के उपयोग के लायक नहीं है। यहां फीकल कोलीफॉर्म की मात्रा भी मानक स्तर से कहीं ज्यादा है। इससे पहले ही श्मशान घाट है और इससे पहले ही, कभी अरावली से आने वाली साहबी नदी और नजफ़गढ़ वेट लेंड की बीच का चैनल रहे और अब सबसे दूषित नाला बन गया नजफ़गढ़ ड्रेन भी है।
एक नजर में स्पष्ट हो जाता है कि सरकार का असली मन्तव्य समूची नदी को पावन बनाने की जगह सबसे पहले इसके पाट को काम कर इसे संकरी नहर में बदलना है। फिर नदी से ली गई जमीन पर दुकानें खोलना और उससे पैसा कमाना है। दिल्ली में बहने वाली नदी की लंबाई के दो प्रतिशत से भी कम को चमका कर लोगों को मुगालते में रखने की यह परियोजना कम से कम यमुना के आंसू तो पोंछ नहीं पाएगी। यहां जानना जरूरी है कि यमुना नदी के आसपास की भूगर्भ संरचना कठोर चट्टानों वाली नहीं है। यहां की मिट्टी सरंध्र है। नदी में प्रदूषण के उच्च स्तर के कारण इसमें कई फुट गहराई तक गाद भरी है, जो कि नदी के जलग्रहण क्षमता को तो कम कर ही रही है, साथ ही पानी के रिसाव के रास्ते भी बना रही है। इसका परिणाम यमुना के तटों पर दलदली भूमि के विस्तार के तौर पर देखा जा सकता है।
जब व्यापक निर्माण के कारण यमुना के उद्गम, पहाड़ों पर जम कर जंगल काटे गए और इस तरह हुए पारिस्थितिकी हानि के कुप्रभाव से नदी भी नहीं बच सकती। महज सिंचाई और बिजली के सपने में यमुना हरियाणा में आने से पहले ही हार जाती है। इधर दिल्ली जिस नदी को निर्मल करने के लिए बजट बढ़ाती है, वास्तव में वह नदी का अस्तित्व है ही नहीं।
जब तक हरियाणा की सीमा तक यमुनोत्री से निकलने वाली नदी की धारा अविरल नहीं आती, तब तक दिल्ली में बरसात के तीन महीनों में कम से कम 25 दिन बाढ़ के हालात नहीं रहेंगे और ऐसा हुए बगैर दुनिया की कोई भी तकनीकी दिल्ली में यमुना को जिला नहीं सकती। एसटीपी, रिवर फ्रंट बनाने की योजनाएं आदि कभी यमुना को बचा नहीं सकते। केवल नदी को बगैर रोके-टोके बहने दिया जाए तो दिल्ली कितना भी कूड़ा डाले, यमुना आधे से अधिक खुद-ब-खुद साफ हो जाएगी।