कपाट खुलने की ऐतिहासिक और धार्मिक परंपरा
यमुनोत्री और गंगोत्री मंदिरों के कपाट खुलने की परंपरा भारतीय तीर्थ यात्रा का महत्वपूर्ण हिस्सा मानी जाती है। यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्थाओं से जुड़ी है, बल्कि पर्वतीय क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर को भी जीवित रखती है। अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर इन मंदिरों के कपाट खुलने से एक नई यात्रा की शुरुआत होती है, जिसमें श्रद्धालु भगवान के दर्शन के लिए समर्पित होते हैं। इन परंपराओं के माध्यम से भक्ति और श्रद्धा का अद्वितीय संगम देखने को मिलता है।
डॉ. बृजेश सती
हिमालय के पश्चिम में स्थित यमुनोत्री धाम, चार धाम यात्रा का पहला पड़ाव है। यह उत्तरकाशी जिले की बड़कोट तहसील में स्थित है। यहां पर यमुनाजी का प्राचीन मंदिर है। मदिर में दर्शन और पूजा-अर्चना कर मनुष्य मोक्ष की कामना करता है। यमुनाजी का वाहन कछुआ है, जो संयम का प्रतीक है।
यात्रा की दृष्टि से यमुनोत्री पहला धाम है। चार धाम यात्रा इसी धाम से प्रारंभ होती है। यहां वामावर्त यात्रा का माहात्म्य है। यमुनाजी के दर्शन से भक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। यह भक्ति और मुक्ति प्रदायिनी मानी जाती है। इसके बाद गंगोत्री, केदारनाथ और अंत में मोक्ष धाम बदरीनाथ यात्रा का माहात्म्य है।
इस बार यमुनोत्री और गंगोत्री मंदिर के कपाट रोहिणी नक्षत्र में वैशाख शुक्ल तृतीया (अक्षय तृतीया) को वैदिक मंत्रोच्चार एवं परंपरानुसार श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खोले जाएंगे।
आइए जानते हैं, यमुनोत्री और गंगोत्री मंदिर के कपाट खुलने की परंपरा। शीतकालीन पूजा स्थलों से यमुनाजी और गंगाजी की भोग मूर्तियां कैसे धाम पहुंचती हैं।यमुनोत्री
अक्षय तृतीय को खुलेंगे मंदिर द्वार
इस यात्रा काल में यमुनोत्री मंदिर के कपाट अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर 30 अप्रैल अक्षय तृतीया पर 11 बजकर 55 मिनट, शुभ योग मे खुलेंगे। मां यमुना जी की भोग मूर्ति सोमेश्वर भगवान की अगुवाई में यमुनोत्री धाम पहुंचेगी जहां मुहूर्त के अनुसार भोग मूर्ति मंदिर की गर्भ गृह में प्रवेश करेगी।
रवाना होगी भोग मूर्ति
मां यमुना की भोग मूर्ति अक्षय तृतीया के दिन ही शीतकालीन पूजास्थल खरसाली गांव से यमुनोत्री धाम के लिए रवाना होगी। भोग मूर्ति प्रातः 8 बजे यमुनाजी के भाई सोमेश्वर जी, शनि महाराज के पावन सान्निध्य में यमुनोत्री धाम के लिए प्रस्थान करेगी। 6 किलोमीटर की पैदल यात्रा के बाद निर्धारित समय पर यात्रा दल यमुनोत्री धाम पहुंचेगा।
यहां यह उल्लेखनीय कि अन्य तीन धामों में उत्सव यात्रा दो या तीन पड़ावों के बाद पहुंचती है। मगर यमुनोत्री धाम में कपाट खुलने के दिन धाम पहुंचती है।
पहले दिन पूजा
तय समय में यमुनाजी की भोग मूर्ति मंदिर गर्भ ग्रह में प्रवेश करेगी। पुजारी वैदिक मंत्रों के साथ विधिवत पूजा-अर्चना करेंगे। यमुनाजी की मंगल आरती के बाद यात्री यमुनाजी का दर्शन कर सकते हैं।
गंगोत्री
कपाट खुलने की परंपरा
गंगोत्री मंदिर के कपाट खुलने की प्राचीन परंपरा है। प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि (अक्षय तृतीया) को मंदिर के कपाट विधि-विधान से खुलते हैं। मंदिर के कपाट खुलने की तिथि निश्चित है, लेकिन मंदिर के खुलने का मुहूर्त प्रतिप्रदा तिथि के दिन निर्धारित किया जाता है। गंगाजी की भोग मूर्ति एवं एवं अन्य चल विग्रह मूर्तियां दो पड़ाव के बाद गंगोत्री धाम पहुंचती हैं।
पहले पड़ाव में डोली उत्सव यात्रा भैरव छाप मंदिर में रात्रि विश्राम करती है। इसके अगले दिन गंगोत्री धाम पहुंचती है। शीतकालीन पूजास्थल मुखवा से गंगोत्री धाम तक यह उत्सव यात्रा पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ 22 किलोमीटर पैदल चलती है।
रोहिणी नक्षत्र में खुलेंगे कपाट
गंगोत्री धाम स्थित गंगोत्री मंदिर के कपाट 17 प्रविष्टा वैशाख रोहिणी नक्षत्र, लाभ बेला, बुधवार 30 अप्रैल को 10 बजकर 30 मिनट पर दर्शन हेतु खोल दिए जाएंगे। इससे पहले 29 अप्रैल 16 प्रविष्टा बैशाख को 11 बजकर 57 मिनट पर मां गंगे की उत्सव डोली अपने शीतकालीन प्रवास मुखवा से गंगोत्री धाम के लिए प्रस्थान करेगी ।
भोग मूर्ति और अन्य विग्रह
शीतकालीन पूजास्थल मुखवा से मां गंगा की भोग मूर्ति, मुकुट, सरस्वती और अन्नपूर्णा के विग्रहों को डोली में रखकर शोभा यात्रा के साथ प्रथम पड़ाव भैरव छाप लाया जाता है।
एक महत्वपूर्ण बात यह है कि डोली को गंगोत्री मंदिर समिति द्वारा चयनित पुजारी ही उठाते हैं। कोई अन्य व्यक्ति उत्सव डोली को स्पर्श नहीं कर सकता।
डोली शोभा यात्रा का रात्रि प्रवास भैरव घाटी स्थित भैरव मंदिर में होता है। अक्षय तृतीया के दिन प्रातः गंगा जी की भोग मूर्ति शोभायात्रा के साथ गंगोत्री धाम पहुंची है।
मुहूर्त में खुलते हैं कपाट
गंगोत्री मंदिर का मुख्य द्वार खुलते ही तय मुहूर्त में डोली को मंदिर के गर्भगृह में प्रविष्ट कराया जाता है। विधिवत पूजा के साथ गंगा जी की पाषाण मूर्ति का अभिषेक पूजन और मंगल आरती की जाती है। राजभोग अर्पित किए जाने के बाद श्रद्धालु दर्शन करते हैं।
गंगा सप्तमी से शृंगार दर्शन
गगोत्री मंदिर के गर्भ गृह में चांदी के सिंहासन पर मकरवाहिनी गंगा की पाषाण शिला से बनी मूर्ति विराजमान रहती है।
मंदिर के कपाट खुलने से गंगा सप्तमी तक शिला रूप में गंगाजी के निर्माण दर्शन करने की परंपरा है। गंगा सप्तमी के दिन गंगाजी की पाषाण मूर्ति पर स्वर्ण मुकुट और चांदी के कलेवर चढ़ाए जाते हैं। इसके बाद शृंगार दर्शन शुरू होता है।