एक पतिव्रता के अडिग साहस की प्रेरक कथा
वट सावित्री व्रत हिन्दू संस्कृति में सुहागिनों का एक पावन पर्व है, जो ज्येष्ठ अमावस्या को रखा जाता है। यह व्रत पतिव्रता धर्म, अखंड सौभाग्य और संतान सुख की कामना के साथ किया जाता है। सावित्री की तपस्या और संकल्प इस व्रत की आत्मा माने जाते हैं।
आर.सी. शर्मा
सनातन परंपरा में ज्येष्ठ माह धार्मिक और आध्यात्मिक नजरिये से बहुत पवित्र माना जाता है। इस महीने की अमावस्या को तो खासतौर पर सुहागिनों का विशेष दिन समझा जाता है, क्योंकि इसी दिन सुहागिनें वट सावित्री व्रत रखती हैं, जो उनके पतियों के लंबी आयु के लिए होता है। माना जाता है कि वट सावित्री व्रत करने वाली सुहागिनों के पतियों पर अकाल मौत का कहर कभी नहीं टूटता। वट सावित्री व्रत को पारिवारिक शांति, सुख और संतान प्राप्ति का व्रत भी माना जाता है। इस व्रत में सबसे महत्वपूर्ण है इसकी कहानी।
त्रिदेवों का प्रती5
हिंदू पौराणिक कथाओं के मुताबिक़ वट यानी बरगद का पेड़ ‘त्रिमूर्ति’ का पर्याय है यानी यह ब्रह्मा, विष्णु और महेश का साक्षात रूप माना जाता है। कहते हैं बरगद के पेड़ की पूजा करने से सौभाग्य प्राप्त होता है। इस व्रत के महत्व और महिमा का उल्लेख कई धर्मग्रंथों व पुराणों में हुआ है जैसे स्कंद पुराण, भविष्योत्तर पुराण तथा महाभारत में।
प्रेम और संकल्प की कथा
कहा जाता है सदियों पहले अश्वपति नाम के एक राजा थे, वह मद्र साम्राज्य के राजा थे। उनकी एक पुत्री थी जिसका नाम सावित्री था। राजा की लड़की सावित्री बड़ा तपस्वी जीवन जीती थी। काफी लंबे समय तक कोशिश करने के बाद भी, राजा अपनी बेटी के लिए एक उपयुक्त वर खोजने में असमर्थ रहे। इस पर उन्होंने सावित्री को अपना जीवनसाथी स्वयं खोजने के लिए कहा। सावित्री ने इसके लिए एक यात्रा की और राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को अपने पति के रूप में चुना।
सावित्री का निर्णय
सावित्री जब लौटकर घर आयीं तो उनके पिता के पास नारद मुनि बैठे थे। जब सावित्री ने अपने पिता से अपनी यात्रा और सत्यवान को पति के रूप में चुने का समाचार दिया तो नारद मुनि ने राजा अश्वपति से कहा कि इस संबंध को मना कर दें क्योंकि सत्यवान अल्पायु हैं, वह महज एक साल ही जिंदा रहेंगे। पिता ने बेटी से नारद मुनि की बात मानने को कहा लेकिन सावित्री ने इनकार कर दिया। उन्होंने साफ़ कह दिया कि उन्होंने सत्यवान को मन से पति के रूप में चुन लिया है और अपने इस निर्णय को नहीं बदलेंगी, चाहे वह अल्पायु हों या दीर्घायु। बेटी दृढ़ता देख पिता भी उससे सहमत हो गए। इस तरह सावित्री और सत्यवान विवाह बंधन में बंध गए।
उपवास और यमराज का आगमन
खुशियों का एक साल बीत गया। अब किसी भी समय सत्यवान की मृत्यु हो सकती थी। इस पर सावित्री ने उपवास करना शुरू कर दिया। अब वह हर समय सत्यवान के साथ रहने लगी। सत्यवान जंगल की तरफ चल पड़ा, साथ में सावित्री भी थी। अचानक सत्यवान एक बरगद के पेड़ के पास गिर गया। सावित्री जान गयी क्या होने वाला है। उसी समय यमराज प्रकट हुए और सत्यवान की आत्मा को उनके शरीर से अलग करने ही वाले थे कि सावित्री ने यम से कहा कि यदि आप सत्यवान को ले जा रहे हैं तो मुझे भी ले चलिए। क्योंकि मैं एक पतिव्रता महिला हूं। पति के बाद मैं यहां क्या करूंगी। यमराज ने कहा ऐसा नहीं हो सकता। यमराज चले तो पीछे पीछे सावित्री भी चल पड़ी। यमराज ने बहुत समझाया लेकिन सावित्री ने कुछ भी नहीं समझा।
तर्क-वितर्क और वरदान
सावित्री की दृढ़ता और संकल्प देखकर यमराज ने कहा कि मैं ये फैसला तो नहीं बदल सकता लेकिन तुम चाहो तो मुझसे अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए तीन वरदान मांग सकती हो। सावित्री ने पहले वरदान में अपने ससुर की आंखों की रोशनी, दूसरे में उनका छिना राज्य और वैभव और तीसरे वरदान के रूप में खुद को पुत्रवती होना मांगा। यमराज ने तथास्तु कहा और वह आगे बढ़ने लगे तो सावित्री ने कहा प्रभु मैं बिना पति के कैसे पुत्र की प्राप्ति कर सकती हूं। इस पर यमराज उसकी लगन, बुद्धिमत्ता देखकर प्रसन्न हो जाते हैं और उसके पति के प्राण वापस कर देते हैं।
पूजन विधान
व्रत को करने का पूरा एक विधि-विधान होता है। सबसे पहले जब यह तिथि लागू होती है, उसका ध्यान रखा जाता है। क्योंकि व्रत उस समय से ही शुरू होता है मसलन इस बार यह 26 मई की दोपहर 12 बजकर 11 मिनट से शुरु होगा और इसका समापन अगले दिन 27 मई को सुबह 8 बजकर 31 मिनट पर होगा। वट सावित्री व्रत वाले दिन सुहागिनें प्रातः जल्दी उठकर स्नान करती हैं और स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेती हैं। इस दिन खास सुहागिनें पूरा शृंगार करती हैं।
इस व्रत में बीच में कुछ भी खाना मना होता है। सिर्फ पानी पी सकते हैं। आमतौर पर इस दिन किसी वट के पेड़ यानी बरगद के पेड़ के नीचे सावित्री-सत्यवान और यमराज की मूर्तियां रखते हैं। फिर बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है उसे जल चढ़ाते हैं। पुष्प, अक्षत, फूल और मिठाइयां चढ़ाते हैं फिर सत्यवान सावित्री की कथा पढ़ते हैं। इस पूरे दौरान यमराज की मूर्ति भी सत्यवान और सावित्री के सामने रखी होती है। पूजा करने के बाद और सत्यवान सावित्री कथा पूरी होने के बाद महिलाएं वट के पेड़ की परिक्रमा करती हैं। आमतौर पर सात या पांच परिक्रमा की जाती है, जितनी परिक्रमाएं की जाती हैं, उतनी ही बार ही धागा बांधा जाता है और हर एक परिक्रमा पूरी करने के बाद एक वरदान मांगने का प्रावधान है, जिसकी मन ही मन कामना की जाती है कहते हैं सच्चे मन से की गयी यह कामना जरूर पूरी होती है। इ.रि.सें.