For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

एकता-शांति का संदेश

04:00 AM Apr 29, 2025 IST
एकता शांति का संदेश
Advertisement

ऐसे वक्त में जब पहलगाम आतंकी हमले के बाद पूरा देश दुख और गुस्से की मन:स्थिति से गुजर रहा है, जम्मू-कश्मीर विधानसभा ने शांति और सांप्रदायिक सद्भाव का एक सशक्त संदेश दिया है। जो कि वक्त की जरूरत भी थी। जम्मू-कश्मीर विधानसभा के विशेष सत्र के दौरान सदन ने सर्वसम्मति से इस वीभत्स हत्याकांड की पुरजोर निंदा करते हुए बाकायदा एक प्रस्ताव पारित किया। जिस आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया, लोगों को आक्रोशित तथा दुखी किया, उसके खिलाफ जम्मू-कश्मीर विधानसभा का विशेष सत्र बुलाना व निंदा प्रस्ताव पारित करना निश्चित रूप से देश के जख्मों पर मरहम लगाने जैसा ही है। निश्चय ही यह संदेश देश की गंगा-जमुनी संस्कृति के अनुरूप ही है। निर्विवाद रूप से आतंकियों का कोई धर्म नहीं होता है, लेकिन हर धर्म के व्यक्ति को खुले मन से आतंकियों की निंदा करनी चाहिए। यह विडंबना ही है कि यह भयावह घटना राज्य से केंद्रशासित बने जम्मू-कश्मीर में शांतिपूर्ण और सक्रिय भागीदारी वाले विधानसभा चुनावों के बाद उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली सरकार के सत्ता में आने के छह माह बाद हुई। ऐसे में मुख्यमंत्री के लिये सबसे बड़ी चुनौती यह सुनिश्चित करना है कि संवेदनशील केंद्र शासित प्रदेश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के पुनरुद्धार से होने वाले लाभ यूं ही व्यर्थ न चले जाएं। यह सकारात्मक संदेश ही है कि जम्मू-कश्मीर के लोगों ने आतंक को सिरे से खारिज किया है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला नरसंहार के बाद घाटी के लोगों के दिलों से सीधे निकल रहे आक्रोश और दुख को कश्मीर के लिये एक उम्मीद की किरण के रूप में देखते हैं। जो पाक पोषित आतंकवाद को नकारने जैसा ही है। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने विधानसभा में कहा भी कि इस केंद्रशासित प्रदेश की हर मस्जिद में पहलगाम हमले में मारे लोगों की याद में मौन रखा गया। जो यह बताता है कि धर्म-संप्रदाय से परे लोग पूरे देश की संवेदनाओं को महसूस करते हैं। साथ ही आतंकवाद को सिरे से खारिज भी करते हैं।
निश्चित रूप से इस नये कश्मीर से आया यह संकेत दिल को छूने वाला है। जो यह भी बताता है कि अभी भी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है। निश्चित रूप से राष्ट्रीय एकता, करुणा और लचीलेपन की यह भावना स्वागत योग्य है। साथ ही यह भी उम्मीद जगी है कि यह नई सोच विघटनकारी ताकतों का मुकाबला कर सकती है। उन अलगाववादियों का जो विकासशील जम्मू-कश्मीर को फिर से 1990 के दशक की शुरुआत के बुरे दौर में धकेलना चाहते हैं। उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री होने के नाते उमर अब्दुल्ला ने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया किया है कि वे राज्य में आये पर्यटकों को सुरक्षित घर वापस भेजने की अपनी जिम्मेदारी में विफल रहे हैं। उन्होंने उन कयासों को खारिज किया कि त्रासदी का उपयोग राजनीतिक लाभ हेतु राज्य का दर्जा पाने के लिये किया जाए। उन्होंने स्पष्ट किया कि जब तक आतंकवाद अपना भयानक रूप दिखाता रहेगा, तब तक जम्मू-कश्मीर का केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा समाप्त नहीं होगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि आतंक के खिलाफ लड़ाई में कश्मीरियों और उनके निर्वाचित प्रतिनिधियों की पूरी तरह से भागीदारी जमीन पर एक स्पष्ट अंतर ला सकती है। हालांकि, बहुत कुछ केंद्र सरकार और विभिन्न राज्यों द्वारा संकटग्रस्त केंद्रशासित प्रदेश को दिए जाने वाले समर्थन पर निर्भर करेगा। निस्संदेह, आतंकवाद के इस विनाशकारी आघात के बाद जम्मू-कश्मीर को संभालने में मदद करना राष्ट्रीय प्राथमिकता बननी चाहिए। निश्चित रूप से जम्मू-कश्मीर विधानसभा से आया यह रचनात्मक संदेश देश की एकता व अखंडता के लिये सुखद ही है। देश में आतंकवाद की इस घटना के बाद जैसे नकारात्मक प्रतिक्रिया देने की कोशिशें की जाती रही है, उसको यह सार्थक जवाब है। जो वक्त की मांग भी थी। घाटी से संदेश आया है कि यहां लोग देश की संवेदना से उसी तरह के सरोकार रखते हैं, जैसा कि अन्य राज्यों के लोग रखते हैं। यह भी कि आतंकवाद किसी भी धर्म का हिस्सा नहीं होना चाहिए। मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है। जिसकी रक्षा करना हरेक नागरिक का दायित्व है।

Advertisement

Advertisement
Advertisement