उ. कोरिया का आत्मघाती ड्रोन व भारत की चिंता
पाकिस्तान का सैन्य साझीदार उत्तर कोरिया जिस तरह से आत्मघाती ड्रोन विकसित करने में सफल हुआ है, क्या भारत को इसकी चिंता करनी चाहिए? भारतीय सेना को हाल ही में नागपुर स्थित रक्षा निर्माण फर्म सोलर इंडस्ट्रीज द्वारा निर्मित 480 लोइटरिंग हथियार प्राप्त हुए हैं, जिनमें 75 प्रतिशत से अधिक स्वदेशी सामग्री है।
पुष्परंजन
उत्तर कोरिया ने रूस से पहले टोही ड्रोन मंगाया। उद्देश्य सीमाओं पर निगरानी का था। अब वो टोही ड्रोन आत्मघाती अस्त्र के रूप में परिवर्तित हो चुके हैं, जिनका परीक्षण गुरुवार को हुआ। आत्मघाती ड्रोन, जिसे ‘लोइटरिंग म्यूनिशन’ के नाम से भी जाना जाता है, तब तक हवाई क्षेत्र में ‘घूमने’ या कब्ज़ा करने में सक्षम होता है, जब तक कि कोई लक्ष्य दिखाई न दे। फिर वह अपने पेलोड के साथ वहां दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है। ड्रोन ख़त्म, और टारगेट ध्वस्त। इस सप्ताह परीक्षण किए गए नए ‘सैटब्योल-4’ संस्करण में पिछले मॉडल की तुलना में लंबे पंख हैं। उत्तर कोरियाई लड़ाकू ड्रोन आखिरी बार पिछले साल नवंबर में एक हथियार प्रदर्शनी में सार्वजनिक रूप से दिखाई दिया था। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से गाइडेड उत्तर कोरियाई आत्मघाती ड्रोन अमेरिका के लिए भी चिंता का विषय है। गोकि, उत्तर कोरिया के सैन्य सम्बन्ध पाकिस्तान से भी काफी पुराने हैं, समय-समय पर इस्लामाबाद के मिसाइल प्रोग्राम में फ्योंगयांग की मदद दिखाई देती रहती है, चुनांचे चिंता दिल्ली को भी होनी चाहिए।
गुरुवार को उत्तर कोरियाई तानाशाह किम ने भूमि और समुद्र पर लक्ष्यों को ट्रैक करने में सक्षम उन्नत टोही ड्रोन का निरीक्षण किया, साथ ही हाल ही में अनावरण किए गए एयरबोर्न अर्ली-वार्निंग (एईडब्ल्यू) विमान का भी निरीक्षण किया। उत्तर कोरिया अपने मौजूदा भूमि-आधारित रडार सिस्टम को बढ़ा रहा है। कोरियन सेन्ट्रल न्यूज़ एजेंसी (केसीएनए) द्वारा प्रकाशित तस्वीरों के अनुसार, उन्हें रडार डोम वाले एक बड़े चार इंजन वाले विमान की जांच करते देखा गया, जिसके बारे में माना जाता है कि यह एक संशोधित रूसी आईएल-76 कार्गो विमान है।
परीक्षण के दौरान प्राप्त तस्वीरों में फिक्स्ड-विंग आत्मघाती ड्रोन को अमेरिकी और दक्षिण कोरियाई टैंकों, बख्तरबंद लड़ाकू वाहनों और मिसाइल लॉन्च वाहनों के मॉकअप पर हमला करते हुए दिखाया गया है। एक फर्स्ट-पर्सन व्यू क्वाडकॉप्टर-स्टाइल ड्रोन भी लक्ष्य पर गोला-बारूद गिराता हुआ दिखाई दिया। राज्य मीडिया ने ड्रोन की उपस्थिति को अस्पष्ट करने के लिए उन्हें पिक्सेल किया। लेकिन जिस तरह अमेरिकी और दक्षिण कोरियाई टैंकों, बख्तरबंद लड़ाकू वाहनों के मॉडल पर यह परीक्षण किया गया, उसने अमेरिका की परेशानी बढ़ा दी है।
जून, 2023 में पहली बार उत्तर कोरिया ने सैटब्योल-4 टोही ड्रोन, और सैटब्योल-9 लड़ाकू यूएवी के डेवलप किये जाने का खुलासा किया था। उत्तर कोरिया ने साल 2024 में फ्योंगयांग में आयोजित हथियार एक्सपो में उत्तर कोरिया ने छह हमलावर ड्रोन दिखाए, जो इस्राइल और तुर्की के डिजाइनों की नकल करते थे।
दक्षिण कोरिया के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिन वोन-सिक ने नवंबर 2024 में कहा था कि मॉस्को ने यूक्रेन के खिलाफ रूस के युद्ध में मदद के लिए सैनिकों को तैनात करने के बदले में प्योंगयांग को एंटी-एयर मिसाइल और अनिर्दिष्ट वायु रक्षा उपकरण प्रदान किए थे। दक्षिण कोरिया के संयुक्त चीफ ऑफ स्टाफ के अनुसार, शुरू में रूस को भेजे गए 11,000 उत्तर कोरियाई सैनिकों में से लगभग 4,000 मारे गए, या घायल हो गए। माना जाता है, कि यूक्रेन के खिलाफ रूस के युद्ध में तैनात उत्तर कोरियाई सैनिकों ने ड्रोन युद्ध में भाग लिया था, जिससे उन्हें युद्ध के मैदान का बहुमूल्य अनुभव प्राप्त हुआ। वाणिज्यिक उपग्रह इमेजरी का उपयोग करते हुए, विश्लेषकों ने पहले बता दिया था कि उत्तर कोरिया एक रूसी निर्मित आईएल-76 कार्गो विमान को पूर्व-चेतावनी भूमिका के लिए परिवर्तित कर रहा था।
उत्तर कोरियाई न्यूज़ एजेंसी ‘केसीएनए’ ने गुरुवार को कहा कि किम ने टोही, खुफिया जानकारी जुटाने, इलेक्ट्रॉनिक जैमिंग और हमला प्रणालियों के लिए नए विकसित उपकरणों का अलग से निरीक्षण किया। तस्वीरों में फिक्स्ड-विंग यूएवी को टैंक के आकार के लक्ष्य पर निशाना साधते हुए दिखाया गया और फिर आग की लपटों में विस्फोट हो गया। परीक्षण के दौरान यूएस आरक्यू-4 ग्लोबल हॉक के टरमैक पर खड़े तानाशाह किम के जो फोटो शेयर किये गए, उससे यही सन्देश जाता है कि हमारे पास अब आत्मघाती ड्रोन है, कर लो जो करना है। उत्तर कोरिया कितना ढीठ है, उसका छोटा-सा उदाहरण 5 जनवरी, 2025 को तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन दक्षिण कोरिया यात्रा के समय देख सकते हैं, तब उसने पूर्वी सागर में मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल दागकर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराई।
आत्मघाती या कामिकाजे ड्रोन का विकास नया नहीं है। इस्राइल के 1982 के ‘ऑपरेशन मोल क्रिकेट 19’ में, ऐसे यूएवी का इस्तेमाल किया था। 1980 के दशक में, अमेरिका ने भी ‘आईएआई हार्पी’ और ‘एजीएम -136 टैसिट रेनबो’ जैसे कार्यक्रमों के ज़रिये आत्मघाती ड्रोन विकसित कर लिये थे। 2000 के दशक से, अपेक्षाकृत लंबी दूरी के हमलों के वास्ते लोइटरिंग हथियारों का विकास किया गया। रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण में ‘ज़ेड.एल.ए. लैंसेट’ और हेसा शहीद 136 सहित कई शहीद ड्रोन का इस्तेमाल किया गया है, जबकि यूक्रेन ने यूजे-25 स्काईलाइन और अमेरिकी निर्मित एयरोविरोनमेंट स्विचब्लेड जैसे घूमने वाले हथियारों को तैनात किया है, जिसे प्लाटून, और दूसरा बैकपैक में फिट किया जाता है। 2022 में यूक्रेन पर रूसी आक्रमण शुरू होने के बाद, रूसी और यूक्रेनी दोनों सेनाएं अक्तूबर, 2023 तक हर महीने हज़ारों एफपीवी ड्रोन का उत्पादन कर रही थीं। 2022 में ब्रिटेन ने घोषणा की थी, कि वह यूक्रेन को ‘सैकड़ों लोइटरिंग एम्यूनिशन’ प्रदान कर रहा है। रूस द्वारा ईरान निर्मित शाहद ड्रोन का उपयोग और यूक्रेन द्वारा तुर्की के बायरकटर टीबी2 ड्रोन की सफल तैनाती ने इन तकनीकों की प्रभावशीलता को प्रदर्शित किया है। मध्य पूर्व में, इस्राइल ने सटीक हमले करने के लिए 23 किलोग्राम पेलोड ले जाने में सक्षम हारोप लोइटरिंग म्यूनिशन पर भरोसा किया है। इस बीच, रूस द्वारा बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किए जाने वाले ईरान के शाहेद-136 ड्रोन ने साबित कर दिया है कि सस्ते, बड़े पैमाने पर उत्पादित ड्रोन परिष्कृत वायु रक्षा प्रणालियों को भी मात दे सकते हैं।
सबसे बड़ा सवाल है, पाकिस्तान का सैन्य साझीदार उत्तर कोरिया जिस तरह से आत्मघाती ड्रोन विकसित करने में सफल हुआ है, क्या भारत को इसकी चिंता करनी चाहिए? भारतीय सेना को हाल ही में नागपुर स्थित रक्षा निर्माण फर्म सोलर इंडस्ट्रीज द्वारा निर्मित 480 लोइटरिंग हथियार प्राप्त हुए हैं, जिनमें 75 प्रतिशत से अधिक स्वदेशी सामग्री है। अधिकारियों ने कहा कि यह प्रणाली उद्देश्य सेना के जवानों द्वारा सटीक हमला करने की क्षमताओं को बढ़ाती है। 2025 की शुरुआत में पाकिस्तान ने भी कम दूरी की मुठभेड़ों में सटीक हमला करने के लिए डिजाइन किया गया अपना नवीनतम ड्रोन ‘ब्लेज़ 25’ पेश किया है, जिसका वजन 25 किलोग्राम है। यह देखते हुए, भारत को चाहिए, कि वह अपने लोइटरिंग हथियार विकास कार्यक्रम में तेज़ी लाये!
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।