इतनी भी आसान नहीं यमुना की सफाई
यमुना की सफाई दिल्ली की राजनीति का केंद्रबिंदु बन चुकी है। सरकार इसे प्राथमिकता दे रही है, जबकि विपक्ष इसकी विफलताओं को उजागर कर रहा है। वैसे यमुना की सफाई से जुड़ी कई तरह की तकनीकी समस्याएं हैं जिसके निवारण के लिए समय और हाइटैक साधन जरूरी हैं।
योगेश कुमार सोनी
यमुना की सफाई का मुद्दा बीते विधानसभा चुनाव में इतना उछाला गया था कि वह शिक्षा, सुरक्षा व रोजगार की तरह जनता व सरकार दोनों ने ही गंभीरता से लिया। बताया यह भी जाता है कि यमुना की सफाई का मुद्दा आम आदमी पार्टी की हार का एक मुख्य कारण भी रहा। बीजेपी सरकार ने शपथ भी नहीं ली थी और सबसे पहले यमुना की सफाई शुरू करते ही वहां आरती भी शुरू कर दी। चुनाव के रिजल्ट के अगले दिन ही यमुना की सफाई व आरती करने का वीडियो जारी कर दिया था। बहरहाल, दिल्ली में बीजेपी की सरकार बने लगभग दो महीने हो चुके और सरकार इस मामले को लेकर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही है। बीते सप्ताह यमुना की सफाई के लिए दिल्ली जल बोर्ड ने ऑपरेशन साहिबी रिवर बोर्ड गठित कर काम भी तुरंत शुरू किया है।
अधिकारियों के अनुसार यमुना में जितनी गंदगी है उसकी करीब 50 फीसदी से अधिक नजफगढ़ ड्रेन से आती है। यदि इसे साफ कर दिया जाता है तो यमुना में गंदगी अपने आप कम हो जाएगी। इसलिए नजफगढ़ ड्रेन में जितने भी सब-ड्रेन आकर मिलते हैं उन सभी को ट्रैप करने का प्लान बनाया गया है। पहले चरण में तिमारपुर से पंजाबी बाग के बीच लगभग 10 किलोमीटर लंबे स्ट्रेच में मिलने वाले 23 ड्रेन को ट्रैप किया जाएगा। जैसा कि सरकार बनते ही बीजेपी इस मुद्दे को हल्के में नहीं ले रही वैसे ही विपक्ष भी इस पर हर बार अपनी प्रतिक्रिया देने में पीछे नहीं हट रहा। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष देवेन्द्र यादव ने बीजेपी की रेखा गुप्ता सरकार को काउंटर करते हुए कहा कि यमुना की सफाई को लेकर किए गए दावे पूरी तरह खोखले साबित हो रहे हैं। यादव ने कहा कि यमुना के 7 मुख्य स्टेशनों से लिए गए पानी के नमूनों की जांच रिपोर्ट में यह पाया गया कि यमुना का पानी न तो पीने योग्य है और न ही नहाने के लायक।
दरअसल, अब केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा कराई गई पानी की गुणवत्ता जांच ने सच्चाई बता दी। रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली के सातों स्थानों पर जल गुणवत्ता बेहद खराब पाई गई है। देखा जाए तो इस समय आम आदमी पार्टी व कांग्रेस के पास तमाम अन्य मुद्दे भी हैं लेकिन यमुना सफाई पर ही राजनीति केन्द्रित है। समझ में यह आता है कि यमुना सफाई का मुद्दा अहम इसलिए भी है कि यमुना से कई तरह की आस्थाएं जुड़ी हैं। जब भी छठ पर्व आता है तो पूर्वांचली यमुना के कई हिस्सों पर पूजा करते हैं। जब ये लोग वहां स्नान करते थे तो पानी नहाने व आचमन के योग्य नहीं होता था। दिल्ली में रह रहे पूर्वांचली हमेशा इसका विरोध करते रहे लेकिन यदि अब भी स्थिति वैसी रही तो बीजेपी के लिए भी एक नकारात्मक संदेश जा सकता है। उत्तरी पूर्वी दिल्ली के सांसद मनोज तिवारी ने पहले से छठ की पूजा के लिए अलग से घाट बनाए थे लेकिन वहां के लोगों का कहना था कि पानी स्वच्छ नहीं था और लोगों में बहुत नाराजगी भी थी लेकिन फिर भी लोगों ने विधानसभा चुनाव में बीजेपी के चोटी के नेताओं पर भरोसा किया और यमुना सफाई के आधार पर वोट दिया।
बीजेपी सरकार ने यमुना की सफाई के लिए 500 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। इसमें 250 करोड़ रुपये सीवर ट्रीटमेंट प्लान और 250 करोड़ रुपये वाटर ट्रीटमेंट प्लान पर खर्च करने की बात कही है। यदि वाकई ईमानदारी से इतना बड़ा बजट लग जाए तो निश्चित तौर पर यमुना को लेकर दिल्ली की तस्वीर बदल जाएगी लेकिन यह बात भी तय है कि इसमें समय लगेगा।
इसके अलावा दिल्ली सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती यह भी है कि यमुना खादर में अवैध तरीके से रहे लोगों को हटाकर कहां स्थापित किया जाए? ज्ञात हो कि बीते वर्ष जब दिल्ली में बाढ़ आई थी तो हजारों लोग खादर से निकल कर सड़कों पर आ गए थे और कई जानवर भी मर गए थे जिसको देखकर आम आदमी पार्टी सरकार के हाथ-पांव फूल गए थे। उन सभी लोगों ने कुछ दिन के लिए अपना आशियाना पुल के नीचे हिस्सों पर व सड़कों पर टेंट लगाकर बना लिया था। लेकिन आश्चर्य यह हुआ कि शासन-प्रशासन के अनुसार वहां जितने लोग रह रहे थे, उससे कई अधिक निकले। मानो जैसे पूरी एक कॉलोनी बसा ली हो जिसको लेकर विभाग ने माना कि यह भी यमुना में गंदगी का एक बड़ा कारण है। लेकिन सच्चाई यह है कि जहां यमुना बहती है वहां के आसपास अभी भी हजारों लोग बसे हुए हैं, जिससे हमेशा उनकी जान को खतरा बना रहता है साथ ही गंदगी भी रहती है।
इसके अलावा दिल्ली के तमाम इंडस्टि्रयल इलाके ऐसे हैं जहां से जहरीला पानी निकलता है। लेकिन उनके लिए सरकार के पास फिलहाल कोई योजना नहीं है। इसलिए जितना आसानी से जनता से वादा किया, राह उतनी आसान नहीं है। यमुना की सफाई से जुड़ी कई तरह तकनीकी समस्याएं हैं जिसके निवारण के लिए समय और हाइटैक साधन जरूरी हैं। लेकिन इच्छाशक्ति व गंभीरता से किया हुआ काम नया सवेरा भी ला सकता है।