आस्था की ज्योति में शांति और तृप्ति
मनोज वार्ष्णेय
राजस्थान के प्रमुख महानगरों में जोधपुर का नाम विशेष महत्व रखता है। यह शहर राजा-महाराजाओं के समय के कई ऐतिहासिक स्थलों के लिए जाना जाता है, जिन्हें देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटकों का तांता लगा रहता है। लेकिन जोधपुर के संतोषी माता मंदिर में श्रद्धालु और पर्यटक दोनों ही अपनी आस्था से मन्नत मांगने आते हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर में माता संतोषी स्वयं प्रकट हुई थीं और वे दुखियों की हर मनोकामना पूरी करती हैं।
प्रकृति की गोद में स्थित इस मंदिर में आते ही भक्त के मन में भक्ति की ज्योति प्रज्वलित हो जाती है। संतोषी माता को भगवान शिव और माता पार्वती की पौत्री तथा गणेश जी की पुत्री माना जाता है। वे दुर्गा का स्वरूप हैं और तप्त मन को शांति तथा संतुष्टि प्रदान करने वाली दयालु माता मानी जाती हैं।
जोधपुर में जहां माता संतोषी स्वयं प्रकट हुईं, वहां एक सुरम्य स्थान है। मान्यताओं के अनुसार, चांदपोल निवासी उदारामजी को लगभग पचास वर्ष पूर्व इस स्थान का पता चला और उन्होंने इसे मंदिर के रूप में विकसित किया। मंदिर की मूर्ति एक गुफा में प्रकट हुई मानी जाती है। यह मंदिर राजस्थान की पारंपरिक वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। यहां आने वाले भक्तों को एक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव होता है। माना जाता है कि माता संतोषी संतान सुख, आजीविका और निरोगी शरीर का आशीर्वाद देती हैं। विशेषकर शुक्रवार को यहां भक्तों का सैलाब उमड़ता है।
स्थानीय लोग बताते हैं कि माता के व्रत के साथ दान करने से उनकी प्रसन्नता और बढ़ जाती है और उनकी कृपा बिना मांगे ही प्राप्त होती है। शायद इसी कारण यहां आने वाले देश-विदेश के भक्त गुड़-चने का प्रसाद बांटते हुए नजर आते हैं। एक लोककथा के अनुसार, माता संतोषी दुर्गा मां का दयालु रूप हैं, इसलिए वे अपने भक्तों पर शीघ्र कृपा बरसाती हैं।
आजकल वैभव लक्ष्मी का व्रत अधिक प्रचलित है, लेकिन जोधपुर के लालसागर स्थित यह मंदिर भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां माता लाल चुनरी में विराजमान हैं और गर्भगृह में उनकी मूर्ति पर शेषनाग की छाया भी देखी जाती है। गुप्त नवरात्रि हो या नवरात्रि, यहां हवन-कीर्तन का सिलसिला चलता रहता है। मन्नत पूरी होने पर भक्त जागरण का आयोजन भी करते हैं। इस मंदिर की खासियत है कि यहां वर्षों से अखंड ज्योति प्रज्वलित रहती है, जो मन को शांति और तृप्ति प्रदान करती है। मंदिर आने से पहले खट्टे खाद्य पदार्थ न लें। गुड़-चने का प्रसाद बच्चों में वितरित करें।
जोधपुर देश के रेल, बस, और हवाई मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। यहां कभी भी आया जा सकता है। बरसात के मौसम में यहां की सुंदरता विशेष मनमोहक होती है। जोधपुर एयरपोर्ट से यह मंदिर लगभग दस किलोमीटर और रेलवे स्टेशन से लगभग पांच किलोमीटर की दूरी पर है।