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आया तकनीकी तिलिस्म से दर्शकों को लुभाने का दौर

04:05 AM Apr 19, 2025 IST
आया तकनीकी तिलिस्म से दर्शकों को लुभाने का दौर
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फिल्म निर्माण की प्रक्रिया में समय के साथ बदलाव आता गया। शुरू में यह प्रक्रिया बेहद मुश्किल थी। फिल्म का हर पहलू चुनौती की तरह था। लेकिन, धीरे-धीरे इसमें तकनीकी संसाधनों का उपयोग बढ़ता गया व फिल्म बनाना आसान होने लगा। लेकिन, अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) ने यह प्रक्रिया और आसान बना दी। फिल्म की प्लानिंग से लेकर स्क्रिप्टिंग और शूटिंग की जगह ढूंढना भी मुश्किल नहीं रहा। यहां तक कि संगीत रचना में भी एआई मददगार होने लगी। हॉलीवुड की तरह अब हिंदी फिल्मों में भी एआई तकनीक का असर दिखाई देने लगा।

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हेमंत पाल
फिल्म निर्माण बेहद पेचीदा और श्रमसाध्य काम है। वास्तव में तो ये कोई काम नहीं, एक तरह का जुनून है। जिसे इसकी धुन लग जाती है, वह सब कुछ छोड़कर इसमें खो सा जाता है, यह जानते हुए कि फिल्म का भविष्य दर्शकों की पसंद पर टिका होता है। हिंदी फिल्मों के इतिहास में ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं, जब फिल्मकारों ने अपनी सारी प्रतिभा किसी एक फिल्म के लिए झोंक दी, फिर भी नतीजा मनमाफिक नहीं रहा। समय बीता और उसके साथ बहुत कुछ बदला। फिल्म निर्माण की तकनीक में भी सुधार आया। पर, ये वो काम है जो तकनीक समृद्धि से ज्यादा बौद्धिक क्षमता पर निर्भर है। ऐसी बौद्धिकता जो दर्शकों को प्रभावित करे और उन्हें ढाई-तीन घंटे तक सीट पर बांधकर रखे। क्योंकि, जरूरी नहीं कि तकनीकी समृद्धि से दर्शक आकर्षित हों। जो फिल्म देखने वाले को प्रभावित करे वही सफल फिल्म मानी जाती है। फिल्म इंडस्ट्री में राज कपूर और सुभाष घई जैसे बड़े शोमैन हुए, पर श्याम बेनेगल और महेश भट्ट को पसंद करने वाले भी कम नहीं हैं। क्योंकि, दर्शकों को बांधकर रखने की दक्षता उनमें भी रही।
इस बात से इंकार नहीं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई ने फिल्म उद्योग को कई तरह से बदल दिया, वहां भी जहां इससे कुछ नया होने की उम्मीद नहीं की जा रही थी। फिल्म निर्माण प्रक्रिया का लगभग हर पहलू इस तकनीक से प्रभावित होने लगा। संपादन और रिकॉर्डिंग सॉफ्टवेयर, फॉर-के और 3-डी मूवी तकनीक, ड्रोन और एआई आधारित पटकथा लेखन टूल से भी फिल्म निर्माण प्रक्रिया पर असर पड़ा। इसके जरिए दृश्य तकनीक और फिल्म देखने के अनुभव, बेहतर ध्वनि प्रभाव, नए स्क्रीनिंग इंटरफ़ेस, आधुनिक संपादन उपकरण पहले कभी न देखे गए अनुभव दर्शाते हैं। साफ़ शब्दों में कहें तो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल के बाद फिल्म उद्योग में नए प्रयोगों का द्वार खुल गया। फिल्म निर्माण की दुनिया के लिए यह क्रांतिकारी कदम रहा। एआई में फिल्म निर्माण प्रक्रिया को हर तरह से व्यवस्थित किया, जिससे इस कारोबार को संचालन दक्षता बढ़ाने, श्रम लागत कम करने और अधिक कमाई करने में सक्षम बनाया जा सके।
हिंदी फिल्मों को प्रभावशाली बनाया जाने लगा
फिल्म निर्माण तकनीक में साल-दर-साल बदलाव आता रहा। तकनीक के साथ फिल्मकारों के अलावा दर्शकों की सोच भी बदली। लेकिन, हाल के बरसों में जो क्रांतिकारी बदलाव देखने में आया, वो है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का फिल्म निर्माण में उपयोग। फिल्म की कहानी के विस्तार से लेकर हर मामले में ‘एआई’ का दखल बढ़ा है। फिल्मों और ‘एआई’ का संयोजन एक नए युग की शुरुआत है। अब तो ‘एआई’ की मदद से हिंदी फिल्में अधिक प्रभावी ढंग से बनाए जाने की कोशिश होने लगी। सबसे ज्यादा काम पटकथा लेखन जैसे मामले में होने लगा, जो कि फिल्म निर्माण की रीढ़ होता है। ‘एआई’ से पटकथा लेखन को अधिक प्रभावी बनाने के साथ नई कहानियों के प्लाट भी गढ़े जाने लगे। इससे अंदाजा होने लगा कि पटकथा का ये आइडिया दर्शकों की पसंद पर खरा उतरेगा या नहीं! अब तो ‘एआई’ की मदद से कैरेक्टर डेवलप करना भी आसान होने लगा। वास्तविक और आकर्षक कैरेक्टर को गढ़ने में भी ‘एआई’ की मदद ली जाने लगी, जो कल्पनाशीलता से परे हैं। बाहुबली, रा-वन और कृष जैसी हिंदी फिल्मों में ऐसे कैरेक्टर्स दिखाई दिए, जिन्हें आसानी से गढ़ना और फिल्मांकन आसान नहीं है। जबकि, हॉलीवुड फिल्मों में ऐसे कैरेक्टरों की दशकों से भरमार है।
स्क्रिप्ट का भविष्य जानना भी आसान
‘एआई’ का उपयोग किसी फिल्म की स्क्रिप्ट का विश्लेषण करने के लिए भी किया जा सकता है, ताकि अनुमान लगाया जा सके कि फिल्म दर्शकों को पसंद आने के साथ और बॉक्स ऑफिस पर फायदेमंद होगी या नहीं। हालांकि, एल्गोरिदम भविष्यवाणियां सटीक साबित नहीं हो सकती। मसलन, वार्नर ब्रदर्स ने अपनी फिल्मों की सफलता और बॉक्स ऑफिस की भविष्यवाणी करने के लिए सिनेलिटिक एआई-आधारित प्लेटफार्म की तरफ रुख किया है। 20वीं सेंचुरी फॉक्स ने मर्लिन प्रणाली को एकीकृत किया, जो फिल्मों को विशेष शैलियों और दर्शकों से मिलाने के लिए ‘एआई’ और मशीन लर्निंग का उपयोग करता है। साथ ही फिल्म के लिए आंकड़े उपलब्ध कराता है। स्क्रिप्ट बुक एक अन्य एआई-आधारित प्रणाली है, जो फिल्म को लेकर भविष्यवाणी करती है। प्री-प्रोडक्शन में भी ‘एआई’ का उपयोग किया जाने लगा है। इसकी मदद से शेड्यूल बनाने, कहानी के लिए उपयुक्त शूटिंग स्थल की खोज भी संभव है। ‘एआई’ में निर्माण प्रक्रियाओं में सहायता और प्री-प्रोडक्शन प्रक्रिया सरल बनाने की काफी क्षमता है। ‘एआई’ को लागू करने से अभिनेताओं की उपलब्धता के अनुसार शूटिंग शेड्यूल योजना स्वचालित हो सकेगी।
इन हिंदी फिल्मों में ‘एआई’ तकनीक
अंग्रेजी के बाद हिंदी फिल्मों में एआई का उपयोग बढ़ता जा रहा है। पिछले डेढ़ दशकों में ऐसी कई फ़िल्में आई जिनमें एआई तकनीक का असर दिखाई दिया व भविष्य में उपयोग और भी अधिक होने की संभावना है। मसलन, रोबोट (2010) फिल्म में एआई का उपयोग रोबोट के चरित्र को बनाने के लिए किया गया। रा.वन (2011) में उपयोग विजुअल इफेक्ट्स और रोबोट के चरित्र को बनाने के लिए हुआ। कृष-3 (2013) में एआई का उपयोग विजुअल इफेक्ट्स और सुपर हीरो के चरित्र को बनाने के लिए किया। बाहुबली (2015) में विजुअल इफेक्ट्स और एनिमेशन के लिए व मिशन मंगल (2019) में एआई का उपयोग विजुअल इफेक्ट्स और स्पेस मिशन दृश्य प्रभावी बनाने के लिए किया गया। विक्रम वेधा (2022) में एआई का उपयोग विजुअल इफेक्ट्स के लिए किया गया था।
फिल्म ‘2.0’ में एआई का सर्वाधिक उपयोग
हिंदी फिल्मों में एआई का सबसे ज्यादा उपयोग ‘2.0’ फ़िल्म (2018) में हुआ। यह फिल्म रोबोटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित थी। इसमें एआई का उपयोग विजुअल इफेक्ट्स, रोबोट के चरित्र को बनाने और संगीत व ध्वनि डिजाइन में किया गया। ‘2.0’ फिल्म में निर्देशक एस शंकर ने कई एआई टूल्स और तकनीकों का उपयोग किया। इस फिल्म में फेस रिकग्निशन तकनीक का भी उपयोग किया गया था, जिसमें रोबोट के चरित्र को पहचानने और उसके चेहरे के भाव समझने में मदद मिली वहीं मोशन कैप्चर तकनीक का उपयोग किया गया, जिससे रोबोट के चरित्र की गतिविधियों को अधिक वास्तविक बनाया जा सके। वहीं संगीत और ध्वनि डिजाइन के लिए एआई का भी उपयोग हुआ, जिससे वे प्रभावी बनें। इन एआई तकनीकों का उपयोग करके ‘2.0’ फिल्म के निर्देशक ने ऐसी फिल्म बनाई, जो दर्शकों को आकर्षित करती है व एआई की क्षमताएं भी प्रदर्शित करती है।
एआई के उपयोग से हिंदी फिल्मों में कई फायदे के साथ चुनौतियां भी हैं। ‘एआई’ के जरिये फिल्मों में अधिक प्रभावी ढंग से काम किया जा सकता है। लेकिन, इसके साथ रचनात्मकता और गुणवत्ता की कमी का ध्यान रखना आवश्यक है। अभी शुरुआती दौर है। समय के साथ ‘एआई’ का उपयोग बढ़ेगा और फिल्म निर्माण आसान होता जाएगा। तब पूरी फिल्म एक कमरे में बैठकर बना ली जाए, तो आश्चर्य नहीं! क्योंकि, एआई से वो सब कुछ संभव है, जिसे अभी तक नामुमकिन समझा जा रहा था।

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