आधी सदी की यातना का आईना दिखाती कविता
सुभाष रस्तोगी
आधुनिक पंजाबी कविता में अपनी तरह के एकमात्र कवि हरिभजन सिंह की कविताओं के सद्यः प्रकाशित संग्रह ‘जंगल में झील जागती’ को उनकी प्रतिनिधि कविताओं का संचयन भी कहा जा सकता है। इसका संपादन एवं अनुवाद हिन्दी की विशिष्ट कवयित्री गगन गिल ने किया है।
‘सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार’, ‘कबीर सम्मान’, ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ और साहित्य अकादमी की सर्वोच्च सम्मान ‘महत्तर सदस्यता’ जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से अलंकृत कवि हरिभजन सिंह अपनी मिट्टी में गहराई से रचे-बसे हैं। ऐसे में सहज ही कल्पना की जा सकती है कि जिन स्थलों पर वे अत्यंत ठेठ और स्थानीय भाषा-प्रयोग में गहरे उतरते हैं, वहां गगन गिल को समानार्थी शब्द ढूंढ़ने में कितनी कठिनाई हुई होगी।
जैसा कि गगन गिल स्वयं कहती हैं— ‘...लेकिन उस बहुत अपनी-सी दुनिया को, जिसमें ठेठ शब्द हैं, उनकी ध्वनियां हैं, उनके सहज जातीय और ऐतिहासिक संदर्भ हैं—क्या कभी ठीक से बताया जा सकता है? क्या उस जगह पर उंगली रखी जा सकती है? समानांतर शब्द ढूंढ़ना मुश्किल है।’
‘जंगल में झील जागती’ में शामिल कविताएं हरिभजन सिंह के सात संग्रहों से चुनी गई हैं— ‘लासा’ (1956), ‘तार तुपका’ (1957), ‘ना धुप्पे न छावें’ (1967), ‘सड़क दे सफे उत्ते’ (1970), ‘अलफ दोपहर’ (1972), ‘दुक्कियां जिभां वाले’ और ‘मत्था दीवे वाला’ (1982)।
हालांकि उनके दो चर्चित संग्रह—‘अधरैणी’ (1962) और ‘अलविदा तों पहिलां’ (1984) इस संचयन में शामिल नहीं हैं, तथापि ‘जंगल में झील जागती’ कविताओं के माध्यम से हरिभजन सिंह की संपूर्ण काव्य-यात्रा की झलक सहज रूप से मिलती है।
उनका बहुचर्चित काव्य-नाटक ‘तार तुपका’ शायद पहली बार पाठक को आधुनिक मनुष्य की उस विडंबनापूर्ण स्थिति से साक्षात्कार कराता है, जहां हथियारों के साये में उसकी दुनिया तार पर लटकती एक बूंद की तरह प्रतीत होती है, जिसे किसी भी क्षण भाप बनाकर उड़ाया जा सकता है।
उनका संग्रह ‘अलफ दोपहर’ बांग्लादेश में हुए कत्लेआम की स्मृति से उपजा दुःस्वप्न है, जो पाठक की चेतना को झकझोर देता है। ‘मत्था दीवे वाला’ तक आते-आते कवि की कविता आत्मालाप में परिवर्तित हो जाती है।
‘बासी’, ‘सिवां’ जैसे शब्द इतने ठेठ और स्थानीय हैं कि हिन्दी में इनके समानार्थी शब्द खोज पाना लगभग असंभव है। कविताएं ‘मां मेरी सौतेली’, ‘वनवास’ और ‘लड़की निरी नंगी जैसी’ अपनी सादगीपूर्ण भाषा में गहरी सामाजिक चेतना से युक्त हैं। इनकी पंक्तियां बिटवीन द लाइन्स पढ़े जाने पर अत्यंत गंभीर अर्थ ग्रहण करती हैं।
अब स्वयं कवि से जानें कि कविता से उनका रिश्ता क्या है—‘ज़िंदगी के साथ मेरी कविता का रिश्ता मोह का, रोशनी का और असफलता का है।’
सच तो यह है कि हरिभजन सिंह की कविता स्वातंत्र्योत्तर भारत की आधी सदी की उस यातना का आईना बनकर सामने आई है, जिसे इतिहास नहीं, केवल कविता ही समझ सकती है और बयान कर सकती है।
पुस्तक : जंगल में झील जागती कवि : हरिभजन सिंह अनुवादक : गगन गिल प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 208 मूल्य : रु. 249.