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आत्मशुद्धि और भक्ति का पवित्र महीना

04:00 AM Jun 30, 2025 IST
आत्मशुद्धि और  भक्ति का पवित्र महीना
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इस अवधि में भौतिक उत्सवों को शून्य कर अथवा रोककर व्यक्ति को आत्म-निरीक्षण के लिए अपने भीतर की ओर जाने यानी आत्मस्थ होने का प्रयास करना चाहिए। इसके अतिरिक्त, यह ‘शून्य माह’ सादगी, आत्म-नियंत्रण और भगवान की भक्ति के लिए भी लोकप्रिय है।

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चेतनादित्य आलोक
हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़, वर्ष का चौथा महीना होता है। इस महीने में, सनातन धर्मावलंबी अनेक महत्वपूर्ण उत्सवों और अनुष्ठानों का आयोजन करते हैं। देखा जाए तो सनातन धर्म में वर्ष का प्रत्येक महीना किसी न किसी भगवान या देवी-देवता को समर्पित रहता ही है। ऐसे ही, आषाढ़ का महीना भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित है। भीषण गर्मी के बाद वर्षा ऋतु का आगमन होने से इस महीने में प्रकृति हरी-भरी और सुंदर हो जाती है। इस महीने में भगवान श्रीविष्णु की पूजा-आराधना का विशेष महत्व होता है, जिनकी कृपा से व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति, समृद्धि एवं आरोग्यता की प्राप्ति होती है। इस महीने में व्यक्ति को दिनचर्या और खानपान में परिवर्तन लाना चाहिए।
आषाढ़ महीने का महत्व
आषाढ़ का महीना धार्मिक, आध्यात्मिक एवं प्राकृतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे ‘शून्य मास’ या ‘शून्य माह’ भी कहा जाता है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि इस अवधि में भौतिक उत्सवों को शून्य कर अथवा रोककर व्यक्ति को आत्म-निरीक्षण के लिए अपने भीतर की ओर जाने यानी आत्मस्थ होने का प्रयास करना चाहिए। इसके अतिरिक्त, यह ‘शून्य माह’ सादगी, आत्म-नियंत्रण और भगवान की भक्ति के लिए भी लोकप्रिय है। हिंदू संस्कृति में इस महीने को ‘प्रतिकूल महीना’ के रूप में भी जाना जाता है। इसीलिए इस महीने में कोई भी महत्वपूर्ण एवं शुभ कार्य यथा- पवित्र धागा (उपनयन) संस्कार, गृह प्रवेश समारोह, विवाह आदि नहीं किया जाता है। हरिशयनी अथवा देवशयनी एकादशी भी इसी महीने में आती है, जब भगवान श्रीहरि विष्णु योगनिद्रा अथवा दिव्य-निद्रा में प्रवेश करते हैं। देश के कुछ भागों में भक्त इस दिन ‘तप्तमुद्रा धारण’ नामक एक अनोखे समारोह में भाग लेते हैं, जिसमें शरीर पर दिव्य प्रतीकों को अंकित करने के लिए गर्म धातु की मोहरों का उपयोग किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान से भक्त का आध्यात्मिक संबंध मजबूत होता है और उसे भगवान का आशीर्वाद मिलता है।
आत्मशुद्धि का महीना
आषाढ़ का महीना वर्षा ऋतु एवं चातुर्मास की शुरुआत का महीना भी होता है। इस दृष्टि से भी देखा जाए तो सनातन धर्म में यह महीना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि व्यक्तिगत एवं सामूहिक आत्मशुद्धि के लिए तपस्या और आध्यात्मिक अनुशासन के पालन के लिए विख्यात चातुर्मास का प्रथम पवित्र महीना आषाढ़ ही होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस महीने में आत्मशुद्धि के लिए सनातन धर्मावलंबियों को भजन-कीर्तन, जप-तप, दान-पुण्य और पूजा-पाठ एवं अन्य धार्मिक अनुष्ठान करने चाहिए।
सूर्य उपासना का महीना
आषाढ़ महीने में ऊर्जा के स्तर को संयमित रखने के लिए श्रीसूर्य नारायण भगवान की उपासना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि सूर्यदेव को अर्घ्य देने से आत्मविश्वास बढ़ता है और सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है। स्कंद पुराण में वर्णन है कि इस महीने में भगवान श्रीविष्णु और सूर्यदेव की पूजा-उपासना करने से बीमारियां दूर होती हैं और व्यक्ति दीर्घायु होता है। भविष्य पुराण में बताया गया है कि सूर्यदेव को अर्घ्य देने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। इसीलिए सनातन धर्म में इस महीने उदीयमान सूर्यदेव को अर्घ्य देने की परंपरा है। बता दें कि तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें चावल, फूल आदि डालकर सूर्यदेव को अर्घ्य देना चाहिए। अर्घ्य देते समय सूर्यदेव के वरुण रूप को प्रणाम कर मंत्र का जाप करना चाहिए। अर्घ्य देने के बाद धूप, दीप से सूर्यदेव का पूजन कर अपने लिए शक्ति, बुद्धि, स्वास्थ्य और सम्मान की कामना करनी चाहिए। भविष्य पुराण में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने पुत्र को सूर्य-पूजा का महत्व बताते हुए कहा है कि सूर्यदेव ही एकमात्र प्रत्यक्ष देवता हैं। जो लोग श्रद्धापूर्वक सूर्य-पूजा करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
श्रीराम ने की थी सूर्य-पूजा
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, युद्ध के लिए लंका जाने से पहले भगवान श्रीराम ने भी सूर्यदेव को अर्घ्य देकर उनकी पूजा-अर्चना की थी। मान्यता है कि सूर्य-पूजा से भगवान श्रीराम को लंकाधिपति राक्षसराज रावण पर विजय प्राप्त करने में सहायता मिली थी।
वामन रूप की पूजा
आषाढ़ महीने के गुरुवार को भगवान श्रीविष्णु के वामन रूप की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन व्रत और पूजा के बाद छोटे बच्चे को भगवान वामन का रूप मानकर भोजन कराना चाहिए और उनकी जरूरत की वस्तुओं का दान करना चाहिए। साथ ही, इस महीने की दोनों एकादशी तिथियों पर भगवान वामन की पूजा के बाद अन्न और जल का दान करना उत्तम माना गया है। स्कंद पुराण के अनुसार, आषाढ़ महीने में भगवान श्रीविष्णु के वामन अवतार की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि इस महीने के देवता भगवान वामन ही हैं। इसलिए आषाढ़ महीने के शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि पर भगवान वामन की विशेष पूजा और व्रत की परंपरा है। वामन पुराण के अनुसार, आषाढ़ महीने के शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि को भगवान श्रीहरि के वामन अवतारी रूप की पूजा करने से व्यक्ति की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
दान-पुण्य का महीना
आषाढ़ महीने में दान करने का कई गुना लाभ प्राप्त होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस महीने में सूर्यदेव से संबंधित वस्तुएं, यथा- तांबे का बर्तन, पीले या लाल कपड़े, गेहूं, गुड़, लाल चंदन आदि का अथवा इनमें से किसी भी वस्तु का श्रद्धापूर्वक दान करना अत्यधिक मूल्यवान माना जाता है। इनके अतिरिक्त छाते, खड़ाऊं, चप्पलें, आंवले आदि का दान करना भी उत्तम होता है।

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