आतंकवाद के खिलाफ बदलाव की निर्णायक नीति
प्रधानमंत्री मोदी का यह डॉक्ट्रिन इतिहास में एक परिवर्तनकारी नीति के रूप में अंकित होगा, जिसने पाकिस्तान की आतंकवाद-प्रेरित गतिविधियों के प्रति भारत के दृष्टिकोण को निर्णायक रूप से फिर से परिभाषित किया। सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयरस्ट्राइक इस बदलते दृष्टिकोण का जीवित प्रमाण हैं।
के.एस. तोमर
मोदी के भाषणों का गहन विश्लेषण दर्शाता है कि उनका डॉक्ट्रिन केवल शब्दों तक सीमित नहीं है—यह अडिग संकल्प के साथ लागू किया गया है। भारत द्वारा नौ आतंकवादी शिविरों का खात्मा और पाकिस्तान के ग्यारह एयर बेसों को नष्ट करना इस नई नीति का प्रत्यक्ष प्रमाण है। संदेश स्पष्ट है कि चरमपंथियों को, चाहे वे पाकिस्तान सेना द्वारा शरण प्राप्त करें या स्वतंत्र रूप से कार्य करें, राज्य कर्ताधर्ता के रूप में माना जाएगा और दोनों को प्रतिशोध का सामना करना पड़ेगा।
मोदी ने इस डॉक्ट्रिन का उपयोग एक व्यापक वैश्विक संदेश देने के लिए भी किया है—पाकिस्तान की आतंकवादी नीति केवल भारत की समस्या नहीं है। प्रधानमंत्री ने यह भी रेखांकित किया कि इस्लामाबाद का आतंकवादी नेटवर्क पश्चिमी शक्तियों को भी निशाना बना चुका है। संयुक्त राज्य अमेरिका पर हुए 9/11 के हमले और लंदन मेट्रो में हुए घातक बम विस्फोटों के तार पाकिस्तान में प्रशिक्षित आतंकवादियों से जुड़े हुए हैं। मोदी के अनुसार, पाकिस्तान में राज्य और आतंकवाद एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, जिससे यह देश अपने प्रॉक्सी युद्ध के कृत्यों में सम्मिलित हो जाता है।
घरेलू स्तर पर, मोदी डॉक्ट्रिन की सफलता 2029 के लोकसभा चुनावों और आगामी बिहार विधानसभा चुनावों में बीजेपी की संभावना को बढ़ा सकती है। आतंकवाद के खिलाफ दृढ़ रुख 2019 पुलवामा हमले के बाद की सर्जिकल स्ट्राइक जैसे राष्ट्रवादी भावनाओं को सशक्त बना सकता है, जो चुनावी गति में एक महत्वपूर्ण कारक साबित हो सकता है। मोदी सरकार की निर्णायक कार्रवाइयां प्रभावी रूप से चुनावी अभियानों में इस्तेमाल की गई हैं, मोदी को एक मजबूत नेता के रूप में प्रस्तुत किया गया है जो भारत की संप्रभुता की रक्षा करने में सक्षम है। विपक्षी दलों के लिए इस विमर्श को नकारने में मुश्किल हो सकती है, क्योंकि वे राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों में अक्सर रक्षात्मक नजर आते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह डॉक्ट्रिन इतिहास में एक परिवर्तनकारी नीति के रूप में अंकित होगा, जिसने पाकिस्तान की आतंकवाद-प्रेरित गतिविधियों के प्रति भारत के दृष्टिकोण को निर्णायक रूप से फिर से परिभाषित किया। दशकों तक, सीमा पार आतंकवाद को कूटनीतिक आदान-प्रदान और तपे-तुले उत्तरों के साथ निपटा गया था। लेकिन मोदी के नेतृत्व में, भारत ने यह घोषणा की है कि आतंकवादी हमलों को अब युद्ध की कार्रवाई के रूप में माना जाएगा—जिसमें सबसे कड़ा दंड, सीमा पार हमलों और आतंकवादियों और उनके संरक्षकों के खिलाफ प्रत्यक्ष प्रतिक्रिया शामिल होगी। मोदी डॉक्ट्रिन का एक और प्रमुख पहलू पाकिस्तान द्वारा प्रचारित परमाणु युद्ध के खतरे को नष्ट करना है। इस्लामाबाद की आदत बन चुकी परमाणु कूटनीति अब प्रभावहीन हो गई है, क्योंकि भारत ने यह प्रदर्शित कर दिया है कि वह परमाणु डर को दरकिनार करते हुए निर्णायक प्रतिक्रिया देने के लिए तैयार है। सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयरस्ट्राइक इस बदलते दृष्टिकोण का जीवित प्रमाण हैं।
भारत की सीमा पार जाकर आतंकवादी शिविरों को नष्ट करने की तत्परता न केवल भारत की सुरक्षा को सुनिश्चित रखती है, बल्कि इसने एक शक्तिशाली वैश्विक संदेश भी दिया है। इसने यह प्रदर्शित किया कि राष्ट्रों के पास आतंकवाद की जड़ें नष्ट करने का संप्रभु अधिकार है, यदि कोई और विकल्प न हो, और यह सिद्धांत अमेरिका, इस्राइल जैसे अन्य देशों के लिए भी प्रासंगिक है जो समान खतरों का सामना कर रहे हैं। यह डॉक्ट्रिन केवल भारत की सुरक्षा रणनीति नहीं है—इसने एक वैश्विक दृष्टिकोण स्थापित किया है, जिससे अन्य राष्ट्रों को सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ सक्रिय रुख अपनाने के लिए प्रेरित किया है। यह डॉक्ट्रिन भारत की स्वदेशी और रूसी एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणालियों और अन्य हथियारों की श्रेष्ठता पर आधारित है, जो पाकिस्तान द्वारा तैनात चीनी हथियारों और रडार प्रणालियों से अधिक प्रभावी हैं। यह तकनीकी बढ़त भारत के रणनीतिक आत्मविश्वास को बढ़ाती है और सीमा पार खतरों से निपटने में मदद करती है। राफेल लड़ाकू विमान की खरीद, उन्नत मिसाइल प्रणालियों का समावेश और सशस्त्र बलों का आधुनिकीकरण इस डॉक्ट्रिन को मजबूत करते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि कोई भी प्रतिकारात्मक हमला तकनीकी श्रेष्ठता से समर्थित हो।
मोदी डॉक्ट्रिन ने भारत को एक प्रतिक्रियाशील राज्य से एक सक्रिय शक्ति में बदल दिया है, जो अपनी संप्रभुता की रक्षा करने के लिए सभी आवश्यक उपायों को अपनाने के लिए तैयार है। इसने भारत की छवि को एक ऐसे राष्ट्र के रूप में स्थापित किया है, जिसके पास न केवल सैन्य क्षमता है बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति भी है अपने हितों की रक्षा करने की। इस डॉक्ट्रिन का अध्ययन वैश्विक थिंक टैंकों द्वारा किया गया है और कई देशों ने इसे अपनी सुरक्षा रणनीतियों में प्रासंगिक पाया है।
लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं।