अबकी बार जनता ने उन्हें मना कर दिया
भूपेन्द्र भारतीय
श्रीमानजी को पहली बार किसी मामले में मना नहीं किया गया है। इससे पहले भी जनता ने उन्हें लगभग मना ही कर दिया था। लेकिन वे माने नहीं और उन्होंने लोकतंत्र की कसमें खा-खाकर जनता को मना लिया था। जितनी बार जनता ने मना किया श्रीमान फिर नाक रगड़ते हुए व राजनीतिक खांसी खांसते हुए जनता के दरबार में पहुंच जाते। भविष्यवाणियां करते। वादे करतेे, प्रायोजित थप्पड़ खाते, भोलेपन के सारे करतब दिखाते, ऐसे में जनता फिर मान जाती!
वैसे लगभग मना करने की कला का आविष्कार श्रीमानजी ने ही किया है। वे इस कला का प्रयोग अपनी राजनीतिक दुकान चलाने के लिए समय-समय पर करते आये हैं। इसमें जनता भी फंसी अौर उनके प्रतिद्वंद्वी भी। धीरे-धीरे रे मना वाली गति से उन्होंने अपने दल को अपने शीशमहल तक ही सीमित कर लिया।
भारतीय राजनीति के इतिहास विषय में आगे यह ‘लगभग मना कर दिया’ का एक अलग से पाठ रहेगा। श्रीमानजी की राजनीतिक कला व नीति को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा। श्रीमानजी से जब-जब पूछा गया विकास कहां हो रहा है तो उनका जवाब रहता, ‘बस लगभग यूट्यूब पर दिखने ही वाला है।’ उन्होंने तो विश्व स्तर की शिक्षा का मॉडल भी लगभग तैयार ही कर लिया था। उसे विज्ञापनों के माध्यम से कुछ क्षेत्रों में लागू भी किया। श्रीमान विज्ञापनों में भी लगभग प्रतिदिन दिख ही जाते थे। घर बैठे ही लगभग सारा विकास हो रहा था। श्रीमान जी ने लगभग मना करने की तिकड़म में जेल यात्रा तक की। जेल में भी बैठकर वे किसी भी आरोप के होने का जनता को लगभग मना करते रहे। वो तो जनता की नाक तक श्रीमान के विकास का यमुना नदी का पानी लगभग आ गया तो जनता ने भी उन्हें इस चुनाव में मना करने का मन बना ही लिया।
जनता विकास पर प्रश्न करती तो वे केंद्र सरकार का सहारा लेकर जनता से कम बजट का बहाना बनाकर लगभग मना लेते। श्रीमानजी अपने स्वास्थ्य लाभ के लिए यात्राएं करते रहे। जरूरी कार्यों की फाइलों व केंद्र सरकार से लगभग समान दूरी बनाकर चलने में श्रीमान जी का कोई तोड़ नहीं है। श्रीमान कब लगभग राजनीति का मफलर बांध लें और कब खांसने लग जाएं, इस पर शीशमहल में रहने वाले अन्य सदस्य भी टीका-टिप्पणी नहीं कर सकते हैं।
इस बार श्रीमान जी की लगभग वाली चालें नहीं चलीं। पहले उन्हें साथी दलों ने लगभग मना किया, अब जनता ने भी उन्हें लगभग मना ही कर दिया। वे स्वयं लगभग के फेर में फंस गए, श्रीमानजी ने भी किसे छोड़ा था जो वे न फंसते। वे एक बार फिर किसी दूसरे शीशमहल की पटकथा लगभग मना करने वाली शैली में लिखी जाएंगी!