For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

अफवाह - एक

04:00 AM Jun 15, 2025 IST
अफवाह   एक
Advertisement

अरुण आदित्य

Advertisement

अचूक आग्नेयास्त्र की तरह,
अंतरिक्ष में उड़ती रहती हैं अफवाहें।
अचानक गिरती हैं किसी लक्ष्य पर,
और ध्वस्त हो जाता है
एक हंसता-खेलता घर।

वाह अफवाह! वाह!
लक्ष्यवेध पर ‘भद्रजन’ देते हैं बधाई।
वाह-वाह पर मुस्कुराती है अफवाह,
मन ही मन बुदबुदाती है—
‘तुम क्या जानो मेरे लक्ष्यवेध का भेद‍?
किसी का घर ध्वस्त करने से पहले
तुम्हारी अंतरात्मा में कर देती हूं छेद।’

Advertisement

अफवाह - दो

अप्सराओं की तरह,
मुक्त गगन में विचरती है।
असत के आभूषण पहन,
छन-छन करती अफवाह सुंदरी।
भोलेपन की खिड़की से घुसती है मन में,
पलक झपकते ही जमा लेती है
मन पर आधिपत्य।
दिल के एक कोने में दुबक जाता है सत्य।

चेतना पर अमा-निशा सी
पसर जाती है अफवाह।
विराट अंधेरे के किसी कोने में कहीं,
खद्योत सम टिमटिमाता रहता है सत्य।

अफवाह - तीन

फावड़ा, कुदाल या गैंती,
कुछ भी लेकर नहीं चलती,
लेकिन जहां पहुंचती है,
वहीं शुरू कर देती है
मनुष्य के मन का उत्खनन।

जहां दिखती है जरा भी मनुष्यता,
उसकी जड़ में डालती है मट्ठा।
और चौपाल पर,
हंसी-ठट्ठा करता आदमी,
नारे लगाते हुए निकल पड़ता है,
फावड़ा, गैंती, कुदाल लेकर।

खनन को बावला हो जाता है मन,
ढूंढ़ने लगता है कोई दुश्मन-भवन।
उसका उत्साह देख आश्वस्त है अफवाह—
‘एक दिन मैं खोद डालूंगी सारा भुवन।’

द्वेष दामिनी

हरे-भरे कानन पर
गिरती है चमक-चाकू की तरह।
एक क्षण के लिए दमक उठता है हरापन,
अगले ही पल जल जाता है समूचा वन।
चमक चाकू से,
चाक हो जाता है धरती का फेफड़ा,
घुटने लगती है धरती की सांस।

जैसे-जैसे अटकती है
धरती की सांस,
वैसे-वैसे बढ़ता है
द्वेष दामिनी का आत्मविश्वास।
प्रेम से देखती है चमक-चाकू की धार,
शुरू कर देती है
अगले लक्ष्य की तलाश।

Advertisement
Advertisement