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अनूठी संरचना और रोचक जीवन व्यवहार

04:05 AM Apr 18, 2025 IST
अनूठी संरचना और रोचक जीवन व्यवहार
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झींगा मछली वास्तव में मछली नहीं, बल्कि एक क्रस्टेशियन जीव है जो ताजे पानी की नदियों और झीलों में पाया जाता है। यह समशीतोष्ण क्षेत्रों में पाई जाती है और दुनिया भर में इसकी अनेक प्रजातियां मौजूद हैं। इसका शरीर अद्भुत संरचना और रोचक व्यवहार दर्शाता है।

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के.पी.सिंह
झींगा मछली वास्तव में मछली नहीं है। यह ताजे पानी की नदियों और झीलों में पाया जाने वाला क्रस्टेशियन है। इसे अंग्रेजी में क्रे फिश कहते हैं। यह जिस पानी में चूने की मात्रा हो उसमें रहना पसंद करती है।
झींगा मछली समशीतोष्ण भागों में पायी जाती है। यह इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, संयुक्त राष्ट्र अमरीका, दक्षिणी अमेरिका, न्यूगिनी, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि में काफी संख्या में देखने को मिलती है। झींगा मछली अफ्रीका में नहीं पाई जाती, किंतु मेडागास्कर में है। इसी तरह यह एशिया के बहुत बड़े भाग में नहीं पायी जाती, किंतु कोरिया और जापान के उत्तरी द्वीपों में बहुतायत से मिलती है। झींगा मछली की कुछ जातियां ऐसी हैं, जिन्हें सरलता से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है और उन्हें पाला जा सकता है। उदाहरण के लिए फ्रांस की झींगा मछली ‘रेड क्ला’ को इंग्लैंड की थेम्स नदी में सफलतापूर्वक पाला जा रहा है। इसी तरह संयुक्त राष्ट्र अमरीका की झींगा मछली जर्मनी में फल-फूल रही है।
झींगा मछली की लगभग 500 जातियां तथा उपजातियां हैं, जिनमें शारीरिक संरचना आकार और आदतों में थोड़ा बहुत अंतर होता है। झींगा मछली अधिक तापमान सहन नहीं कर पाती, यह दोपहर के समय पानी में हो या पानी के बाहर छांव में चली जाती है। यह सर्दियों में नदी के किनारे मिट्टी में गहरी मांद बनाती है। कुछ जातियां वर्षभर मांदें बनाती हैं और जमीन पर रहती हैं।
झींगा मछली की शारीरिक संरचना बड़ी विचित्र होती है। सामान्यतया इसकी लंबाई 10 सेंटीमीटर या इससे कुछ अधिक होती है, किंतु कुछ जाति की झींगा मछलियां बहुत बड़ी तथा भारी होती हैं। विश्व की सबसे बड़ी झींगा मछली तस्मानिया में पायी जाती है। एस्टेकाप्सिस फ्रेंकलिनी नामक इस झींगा मछली का वजन 4 से 5 किलोग्राम तक होता है। झींगा मछली का रंग रेतीला पीला, हरा या गहरा कत्थई होता है। झींगा मछली का सिर और वक्ष एक आवरण से ढका रहता है। इस आवरण का अगला सिरा नुकीला होता है। झींगा मछली के दो यौगिक आंखें होती हैं एवं सिर के अग्रभाग में संवेदनशील अंगों से युक्त 4 एंटीना होते हैं। इनके साथ ही एक जोड़ा लंबा एंटीना का होता है, जो स्पर्शेन्द्रिय का कार्य करता है। झींगा मछली के एक जोड़ा मजबूत और दो जोड़े कमजोर जबड़े होते हैं। इन जबड़ों को मैक्सिली कहते हैं। शरीर के अंत में एक बड़ी पंखे जैसी पूंछ होती है। इसकी पूंछ अत्यंत विलक्षण होती है। यह इसकी सहायता से शत्रु से बचने के लिए तेजी से पीछे की ओर तैर सकती है।
झींगा मछली का प्रमुख भोजन पानी के छोटे-छोटे जीव हैं। कुछ मछलियां जलीय पौधे खाती हैं। इसके शिकार करने का ढंग रोचक होता है। यह अपने शिकार को पैरों के अगले हिस्से से पकड़ती है और इसके बाद उसके टुकड़े-टुकड़े कर देती है।
नर और मादा झींगा मछली की शारीरिक संरचना अलग-अलग होती है तथा दोनो अर्धआंतरिक समागम करते हैं। इसका समागम काल सितंबर से शुरू होता है और अक्तूबर के अंत तक चलता है। मादा झींगा मछली शुक्राणु लेकर अपनी मांद में चली जाती है और वहां लगभग 100 अंडे देती है। यह अंडे शुक्राणु के संपर्क में आकर निषेचित हो जाते हैं और इसके तैरने वाले पैरों से चिपक जाते हैं। लगभग छह माह बाद अंडे फूट जाते हैं और झींगा मछली का बच्चा एक छोटी मछली के रूप में ही जन्म लेता है। नवजात बच्चे का शरीर पारदर्शी होता है तथा यह अपने अगले पंजों से मादा के तैरने वाले पैरों से कुछ समय तक चिपका रहता है। इसके बच्चे चार बार केंचुल बदलते हैं। इसे एक बार केचुल बदलने में छह घंटे लगते हैं। इस दौरान यह किसी माद या इसी तरह के सुरक्षित जगह में छिपी रहती है और कुछ खाती-पीती नहीं है। इस काल में यह बहुत कठोर हो जाती है। कई बार केंचुल बदलते समय कमजोरी के कारण इसकी मृत्यु भी हो जाती है।
झींगा मछली के बच्चे दो से तीन वर्ष के बीच वयस्क हो जाते है तथा लगभग 20 सालों तक जीवित रहते हैं। दुनिया के अधिकतर देशों में इसे बड़ी रुचि से खाया जाता है। कुछ आदिवासी क्षेत्रों में इसे कच्चा भी खाते हैं, जो हानिकारक है। झींगा मछली में पर्याय एक परजीवी लारवा रहता है, जो मानव के फेफड़ों में पहुंच जाता है। यह परजीवी लारवा अनेक घातक बीमारियों को जन्म देता है, जिनसे व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है। इ.रि.सें.

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