अनुशासित जीवनशैली सांस्कृतिक विविधता का संगम
लंदन केवल इंग्लैंड की राजधानी नहीं, बल्कि दुनिया का एक प्रमुख और प्रतिष्ठित महानगर है। यह शहर ऐतिहासिक इमारतों, शाही विरासत, आधुनिक तकनीक, अनुशासित जीवनशैली और सांस्कृतिक विविधता का अद्भुत संगम है। लंदन की हर गली में विश्व नागरिकता की झलक मिलती है।
अमिताभ स.
पंजाबी कहावत बेशक है कि जिन्ने लाहौर नहीं वैख्या, ओ जम्मया ई नई। लेकिन असल में होना चाहिए कि जिसने लंदन नहीं देखा, उसने विलायत, या कहें विदेश, देखा ही नहीं। क्योंकि सदियों से विलायत का मतलब ही इंग्लैंड समझा जाता है और इंग्लैड की राजधानी लंदन है। लंदन को यूरोप ही नहीं, सारी दुनिया का सबसे मशहूर महानगर कह सकते हैं। हर मायने में नम्बर वन। इस कदर कि यहां की हाई- फाई ऑक्सफोर्ड स्ट्रीट पर टहलते- टहलते देश-दुनिया के सिने सितारे, विश्व विख्यात खिलाड़ी, कद्दावर नेता, जाने-पहचाने फैशन डिजाइनर वगैरह शख्स नज़र आ ही जाते हैं। ख़रीदारी के रईस शौकीन तो मानते हैं कि अगर लंदन के ‘हैरोड्स’ स्टोर में खरीदारी नहीं की, तो क्या किया। करीब दो सौ साल पुराने भव्य स्टोर में दुनिया ही हर चीज मिलती है। बेहद महंगा तो है ही, इसलिए कुछ ख़रीदें या न ख़रीदें, ‘हैरोड्स’ में टहलना दिलकश अनुभव है।सड़कों पर चहल-पहल है, भीड़भाड़ भी। कारों की कतारें हैं, लेकिन हॉर्न बजने की आवाजें नहीं आती। ज्यादातर लोग साइकिल से ज्यादा पैदल चलना पसन्द करते हैं। सुबह-सवेरे सूट-बूट में लोग ऑफ़िस के लिए निकल पड़ते हैं। लंदन की ज्यादातर मेट्रो अंडरग्रांउड है, ट्यूब कहलाती है। ट्यूब में बैठते ही नौजवान और बुजुर्ग मोबाइल में आंखें गढ़ाने की बजाय अखबार या कोई किताब पढ़ते हैं। यानी लंदन वाले आज भी पढ़ने के शौकीन हैं। कुछेक रूटों पर ड्राइवर के बिना ही मोनो रेल दौड़ती है। इनमें फ्रंट सीट पर बैठकर सफर करने का निराला मजा है।
थैंक यू और सॉरी का चलन
सड़कों पर टैक्सियां चलती हैं, लेकिन बेहद महंगी। पब्लिक ट्रांसपोर्ट का अहम हिस्सा आज भी बसें हैं। हरेक बस स्टॉप पर, बस के आने-जाने का टाइम टेबल लगा है। बड़ी बात है कि बसें ऐन वक्त पर स्टॉप पर आ रुकती हैं। मुसाफ़िरों की घड़ियां आगे-पीछे हो सकती हैं, बसों के आने का टाइम नहीं। खास बात है कि बसें संकरी से संकरी गलियों में भी आराम से गुजर जाती है। बस में कंडक्टर नहीं होते। ड्राइवर ही कम्प्यूटरी टिकट निकाल कर देता है। स्टॉप पर बस रोकनी है, तो सीटों के बगल में लगा स्विच दबाइए। बस ऐन स्टॉप पर रुक जाएगी। अगले दरवाज़े से उतरते हुए मुसाफिर और ड्राइवर एक-दूसरे को ‘थैंक यू - थैंक यू’ कहते नहीं थकते। लगता है कि थैंक यू (धन्यवाद) और सॉरी (क्षमा करें) का जिस कदर इस्तेमाल लंदन में होता है, उतना दुनिया के किसी शहर में नहीं होता।
लोग कुत्ते ही नहीं, बिल्लियां भी पालते हैं। कॉलोनियों में सन्नाटा रहता है। करीब-करीब सभी कॉलोनियों के घर एक जैसे हैं- लाल ईंटदार दीवारें हैं और सफेद रंग के लकड़ी की दरवाज़े व खिड़कियां हैं। खिड़कियों पर सिर्फ कांच लगा है, अपने देश की तरह जंगले नहीं लगे हैं। इससे लगता है कि वहां चोरी- चकारी का भय नहीं है। डेढ़-दो मंजिला मकान हैं और छत सीधी की बजाय दोनों तरफ़ ढलानदार है। ऐसी छतों का मतलब है कि सर्दियों में लंदन में बर्फ पड़ती है और यहां की बर्फानी हवाओं वाली ठंड यूं ही मशहूर है। हर मकान के कमरों में फायर-प्लेस हैं और धुआं निकलने के लिए चिमनियां बनी हैं। खिड़कियों के शीशे बंद रहते हैं। तेज ठंड से बचाव के लिए घरों के भीतर सेंट्रल हीटिंग सिस्टम है। घर क्या, दफ्तर, बस और बस स्टॉप तक हीटिंग से लेस हैं। मई और जून ज़रा गर्म महीनों में भी दिन भर ठंडी हवाएं बहती हैं।
घर से निकलने से पहले, लोग अपना मोबाइल-लैपटॉप तो ले जाते ही हैं, छाता ले जाना भी नहीं भूलते। बूंदाबांदी कभी भी टपकने लगती है। सड़कों, बसों- ट्यूबों, रेस्तरांओं और पार्कों में युगल मदमस्त प्यार का इजहार करते यहां- वहां नज़र आते हैं। वीकेंड तो और भी मौज-मस्ती से सराबोर हो जाते हैं। रात भर पब- बार से निकल-निकल कर, नौजवानों का हुजूम सड़कों पर नाचता- गाता-झूमता है। पिकेडली सर्कस और लेस्टर स्क्वेयर में रौनकें रात-रात भर जवान रहती हैं। पिकेडली सर्कस के आसपास की गलियां सेक्स टाउन है- नाम है सोहू एरिया। सेक्स लाइव शोज भी हाई स्टैंडर्ड के हैं।थेम्स नदी और लंदन ब्रिज
लंदन थेम्स नदी के किनारे बसा है। थेम्स पर बना लंदन ब्रिज 1894 से है और यह खुलने-बंद होने वाला दुनिया का पहला पुल है। हर शाम समुद्री जहाज़ों के आने-जाने के लिए आज भी एक दफा जरूर खुलता-बंद होता है। बिग बेन तो लंदन का लैंडमार्क ही है। अन्य आकर्षणों में बकिंघम पैलेस, सेंट जेम्स पार्क, हायडे पार्क, वेस्ट मिंस्टर, एब्बे, ट्रेफ्लेगर स्क्वेयर, टॉवर ब्रिज, लंदन आई, लंदन प्लेनेटेरियम वगैरह शुमार हैं।
और तो और, 1835 से चालू मैडम टुसाडस वेक्स म्यूजियम की दुनिया तो बेमिसाल है। यहां सैलानी अमेरिकी राष्ट्रपति समेत विख्यात शख्सियतों के मोम के बुतों के संग फोटो खिंचवाते हैं।
ब्रिटिश राजघराने के शाही खजाने की भव्य नुमाइश ‘द टॉवर ऑफ लंदन’ स्थित ‘ज्वेल हाउस’ में देखने जाने का नायाब मौक़ा भी मिलता है। कोहिनूर तो क्वीन मैरी क्राउन नामक मुकुट में जड़ा है, जो हमेशा ज्वेल हाउस की शान बना रहता है, जो नुमाइश से कभी हटाया नहीं जाता। खजाने में कोहिनूर अकेला हीरा नहीं है। वहां शोकेसों में सजे सभी रत्न-नगीने असली हैं, जबकि वहां रोज बीस हज़ार से ज़्यादा सैलानी देखने आते हैं। अक्सर लोग ज्वेल हाउस वार्डन से पूछते हैं, ‘हीरे-जवाहरातों की कीमत क्या है?’ वह बताते हैं, ‘शाही खजाने की कीमत बेशकीमती सोने और हीरे जवाहरातों से कहीं अधिक है। इन्हें ऐतिहासिकता की नजर से आंकना बेहतर है।’
साउथ हॉल है पंजाबी कॉलोनी
लंदन वर्ल्ड सिटी है। कॉस्मोपॉलिटन मिजाज के चलते लंदन में दूसरे देशों के लोगों ने अपने छोटे-छोटे इंडिया, चीन, बांग्लादेश वगैरह बसा लिए हैं। भारतीयों में ज्यादातर गुजराती और पंजाबी लंदन में रहते हैं। हाल के सालों में वहां ताज होटल भी खुल गया है। मिनी इंडिया का बड़ा ठिकाना है साउथ हॉल। दुकानें और दुकानदार सभी पंजाब के देहाती भारतीय हैं। समोसे, छोले-भटूरे, पानी पूरी, पाव भाजी, जलेबी, लस्सी या कहें करीब-करीब हर शाकाहारी और मांसाहारी हिंदुस्तानी स्ट्रीट फूड यहां चख सकते हैं। बाजारों में तो नहीं मिलते, लेकिन घरों में भुट्टे भूनकर लोग चाव से खाते हैं। पंजाबी का ऐसा रंग जमा है कि दुकान, सड़कों, बसों वगैरह तमाम संकेत बोर्डों पर अंग्रेजी के साथ-साथ बाकायदा पंजाबी में भी लिखा हुआ है। बहुत बड़ा गुरुद्वारा भी है।