अनमोल श्रद्धा का सम्मान
04:00 AM Apr 19, 2025 IST
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स्वामी दयानंद गिरि प्रायः कहते थे कि गरीब-असहाय की मदद करने वाला व्यक्ति स्वतः ही ईश्वर की कृपा का अधिकारी बन जाता है। स्वामी जी चौबीस घंटे में एक बार भिक्षा से अर्जित भोजन करके अपना अधिकांश समय साधना, सेवा व प्रवचन में लगाते थे। उन्हें एक बार नंगे पैर विचरण करते देख एक श्रमिक ने कपड़े के जूते भेंट किए। जिसे उन्होंने कृतज्ञता से ग्रहण किया। फिर एक संपन्न भक्त ने महंगे जूते लाकर दिए और कपड़े के जूते फेंकने को कहा। स्वामी जी ने प्रस्ताव को अस्वीकार करते हुए कहा कि मजदूरी के पैसे से खरीदे गए इन जूतों में श्रमिक का अगाध प्रेम निहित है। मैं इन्हें फट जाने तक पहनता रहूंगा।
प्रस्तुति : डॉ. मधुसूदन शर्मा
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