अधिक निवेश से गहन तकनीक को संबल
04:00 AM Apr 19, 2025 IST
Advertisement
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा छेड़े गए टैरिफ युद्ध के बीच, भारत में स्टार्टअप्स हों या बड़ी कंपनियां, दोनों के लिए डीप टेक को विकसित करना और अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाएगा। हमें डीप टेक इनोवेशन सिस्टम को बढ़ावा देने के लिए एक मजबूत नीतिगत पहल बनाने की जरूरत है, जिसके लिए पर्याप्त सार्वजनिक निवेश का इंतजाम हो।
Advertisement
दिनेश सी. शर्मा
भारतीय स्टार्टअप्स (नव उद्यमों) के ध्यान के केंद्र को लेकर वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल द्वारा की गई टिप्पणी से शुरू हुई बहस नवाचार और रोजगार सृजन के इर्द-गिर्द घूमती रही। मंत्री जी चाहते हैं कि हमारे स्टार्टअप्स आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), रोबोटिक्स, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी और ग्लोबल लॉजिस्टिक्स जैसे डीप टेक (गहन तकनीकी) क्षेत्रों में काम करें। जिस तरह सरकार स्टार्टअप्स को बढ़ावा देना चाह रही है, दरअसल, विशाल आकार वाले हमारे उपभोक्ता बाजार से जितने अवसर बन सकते हैं, उसके मद्देनज़र यह अपेक्षा करना उचित भी है।
हालांकि, जिस स्थिति का बखान मंत्री महोदय ने किया, उसके पीछे की वजहों पर जब तक हम ध्यान नहीं देंगे, तब तक स्टार्टअप्स के लिए उनकी इस उम्मीद पर खरा उतरना मुश्किल होगा। अधिकांश भारतीय स्टार्टअप्स ने नई तकनीकों के अनुप्रयोग और अपनाने में काफी अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन बहुत कम स्टार्टअप्स नई तकनीक को विकसित करने, उसका व्यवसायीकरण करने या फिर भारतीय संस्थाओं द्वारा विकसित तकनीकों एवं खोजों को उद्यमशील उपक्रमों में फलीभूत करने का काम कर रहे हैं।
प्रौद्योगिकी विकास को मौलिक अनुसंधान, विश्वविद्यालयों के साथ समन्वय और यथेष्ट जनशक्ति की आपूर्ति वाले पारिस्थितिकी तंत्र की आवश्यकता होती है। भारत ने तकनीकी सेवाओं में अच्छा प्रदर्शन किया है क्योंकि इस क्षेत्र के लिए सुयोग्य इंजीनियरिंग जनशक्ति पर्याप्त मात्रा में थी और इस व्यवसाय में मौलिक शोध की आवश्यकता नहीं पड़ती। देश ने शोध प्रणाली, शिक्षाविदों को साथ जोड़कर और प्रशिक्षित जनशक्ति के साथ जीवन विज्ञान क्षेत्र में ठीक-ठाक प्रदर्शन किया है। विदेशी कंपनियों के आउटसोर्स रिसर्च एंड डेवेलपमेंट केंद्रों में काम करने वाले भारतीय उनके लिए नए उत्पाद और बौद्धिक संपदा विकसित कर रहे हैं। वे ऐसा इसलिए कर पाते हैं क्योंकि वहां उन्हें भरपूर निवेश का फायदा प्राप्त होता है और तमाम जरूरी उपकरण उपलब्ध हैं।
डीप टेक क्षेत्र अत्याधुनिक खोजों और उच्च-स्तरीय नवाचार द्वारा संचालित होते हैं, जो आगे चलकर बुनियादी शोध और विश्वविद्यालयों के उन्नयन में गहन और निरंतर निवेश के माध्यम से ही प्राप्त हो सकते हैं। जब देश अपने सकल घरेलू उत्पाद का 1 प्रतिशत से भी कम अनुसंधान और विकास पर खर्च करेगा, तो स्टार्टअप्स से बिल्कुल नई चीज़ें बनाने की उम्मीद करना अवास्तविक होगा। उदाहरण के लिए, पिछले कुछ वर्षों से भारत में सुर्खियों में रहने वाले डीप टेक विषयों में एक है क्वांटम कंप्यूटिंग। सरकार ने 2031 तक 6,000 करोड़ रुपये (लगभग 735 मिलियन डॉलर) के वित्तपोषण के साथ राष्ट्रीय क्वांटम मिशन (जिसमें मुख्य ध्यान का केंद्र क्वांटम कंप्यूटिंग पर है) बनाने की घोषणा की है। देखने में यह एक बड़ी राशि लग सकती है, लेकिन अन्य देशों की तुलना में यह कुछ भी नहीं है – चीन ने अपनी क्वांटम प्रौद्योगिकी पहल के वास्ते 15 बिलियन डॉलर का सार्वजनिक निवेश आरक्षित कर रखा है।
किसी भी क्षेत्र में शोध पत्रों का प्रकाशन मौलिक शोध का एक अन्य महत्वपूर्ण अवयव होता है। चीन का राष्ट्रीय प्राकृतिक विज्ञान फाउंडेशन क्वांटम कंप्यूटिंग अनुसंधान प्रकाशनों में अपने अमेरिकी समकक्षों से काफी आगे है। हालांकि जब बात पेटेंट की आती है तो आईबीएम, माइक्रोसॉफ्ट और गूगल के अलावा डी-वेव और क्वांटिनम जैसी विशेषज्ञ क्वांटम कंपनियों के पास क्वांटम कंप्यूटिंग से संबंधित पेटेंट बड़ी संख्या में हैं। ये क्वांटम सॉफ्टवेयर स्टैक के मूल स्रोत हैं, जिन पर अन्य कंपनियां निर्भर करती हैं। नतीजतन, इस क्षेत्र में हमारी निर्भरता भविष्य में अंतरराष्ट्रीय कंपनियों पर बढ़ती जाएगी, क्योंकि ऊर्जा से लेकर चिकित्सा तक के क्षेत्रों में समस्याओं के समाधान के लिए डीप टेक का इस्तेमाल पहले से हो रहा है।
एक उदाहरण है, नई बैटरी सामग्री की खोज के लिए एआई और उच्च-प्रदर्शन कंप्यूटिंग (हाई परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग) का संयोजन। हैरानी की बात है कि माइक्रोसॉफ्ट द्वारा विकसित एक एआई मॉडल का उपयोग करके, अमेरिकी ऊर्जा विभाग के पैसिफिक नॉर्थवेस्ट नेशनल लेबोरेटरी के वैज्ञानिक 32 मिलियन संभावित उम्मीदवार सामग्रियों की स्क्रीनिंग करने में सक्षम हुए। वेे एक ऐसी नई सामग्री का पता लगा पाए हैं जिसमें लिथियम इलेक्ट्रोलाइट की जरूरत को लगभग 70 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। इस महत्वपूर्ण कार्य का नेतृत्व वैज्ञानिक विजय मुरुगेसन ने किया, जिन्होंने तमिलनाडु के भारथिअर विश्वविद्यालय से पीएचडी की है। यह एक उत्कृष्ट उदाहरण है कि कैसे डीप टेक नवाचार और उद्योग एवं अनुसंधान संस्थानों के बीच साझेदारी से एक जटिल समस्या का समाधान निकल सकता है।
भारत में कई वर्षों से हाई परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग मिशन और एक मजबूत सामग्री वाला विज्ञान समूह भी है, लेकिन हमें अभी तक ऐसा सहयोग और ऐसा परिणाम देखने को नहीं मिला है। अगर मंत्री महाेदय ने 2023 में पीएसए विभाग द्वारा तैयार की गई राष्ट्रीय डीप टेक स्टार्टअप नीति के मसौदे को देखने की जहमत उठाई होती, तो हाल ही में स्टार्टअप इवेंट में जो सवाल उन्होंने पूछे, उनका जवाब खुद-ब-खुद मिल जाता।
यह नीति, जो अभी तक भी सिर्फ कागज़ों पर ही है, इसमें ‘बुनियादी अनुसंधान एवं विकास को नए सिरे से गति प्रदान करने के लिए अनुसंधान एवं विकास पर सकल व्यय में वृद्धि’ का प्रस्ताव दिया गया है, जिससे कि उभरते डीप टेक स्टार्टअप्स के लिए आवश्यक विज्ञान आधार और प्रशिक्षित वैज्ञानिक मानव संसाधन रूपी महत्वपूर्ण बुनियाद को संबल मिल पाए। इसने अकादमिक संस्थानों और शोध प्रयोगशालाओं में मौजूदा शोध मूल्यांकन प्रणालियों में संशोधन का भी सुझाव दिया है, ताकि उत्पन्न ज्ञान को उद्यमशील उपक्रमों में बदला जा सके। इसकी प्राप्ति शोध प्रयोगशालाओं में एक अलग प्रौद्योगिकी व्यवसायीकरण विभाग बनाकर और आवश्यक दिशा-निर्देश प्रदान करके की जा सकती है। इसके अलावा, संकाय सदस्यों को उद्यमशील जोखिम उठाने के लिए प्रोत्साहन दिए जाने की आवश्यकता है। इस तरह, वे या तो अपना खुद का स्टार्टअप शुरू कर सकते हैं या मौजूदा स्टार्टअप्स को प्रौद्योगिकी हस्तांतरित कर सकते हैं।
डीप टेक का विकास बढ़े हुए अनुसंधान एवं विकास व्यय और उद्योग-अकादमिक सहयोग के अलावा, लिथियम एवं दुर्लभ खनिजों जैसी महत्वपूर्ण सामग्रियों तक पहुंच पर निर्भर करता है – जिनकी वैश्विक आपूर्ति चीन द्वारा नियंत्रित है। फिर रणनीतिक सामग्रियां जैसे कि उन्नत कंपोजिट, कार्बन और सिरेमिक सामग्री भी हैं, जिनका इस्तेमाल रक्षा, परमाणु, अंतरिक्ष, एयरोस्पेस और इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्रों में होता है। ऐसी सामग्रियों तक पहुंच भी प्रतिबंधित है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा छेड़े गए टैरिफ युद्ध के बीच, भारत में स्टार्टअप्स हों या बड़ी कंपनियां, दोनों के लिए डीप टेक को विकसित करना और अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाएगा। हमें डीप टेक इनोवेशन सिस्टम को बढ़ावा देने के लिए एक मजबूत नीतिगत पहल बनाने की जरूरत है, जिसके लिए पर्याप्त सार्वजनिक निवेश का इंतजाम हो।
लेखक विज्ञान संबंधी विषयों के स्तंभकार हैं।
Advertisement
Advertisement