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अधर्म के खात्मे का धर्म का गर्जन

04:05 AM May 05, 2025 IST
अधर्म के खात्मे का धर्म का गर्जन
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नरसिंह जयंती को देश भर में ‘भगवान नरसिंह प्रकटोत्सव’ के रूप में मनाया जाता है। वहीं, दक्षिण भारत में वैष्णव संप्रदाय के लोग इनकी पूजा संकट के समय रक्षा करने वाले देवता के रूप में करते हैं।

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चेतनादित्य आलोक

वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अपने परम प्रिय भक्त प्रह्लाद समेत सभी प्राणियों की रक्षा एवं विश्व में धर्म की पुनः स्थापना करने हेतु भगवान श्रीहरि विष्णु ने स्वयं ही नरसिंह रूप में अवतार लिया था।
जय-विजय को शाप
श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार सृष्टि के आरंभ में ब्रह्माजी ने अनेक लोकों की रचना करने की इच्छा से घोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान श्रीहरि विष्णु ने स्वयं ही सनकादि (सनक, सनन्दन, सनातन एवं सनत्कुमार) चार मुनियों अथवा कुमारों के रूप में अवतार लिया था। बता दें कि ये भगवान श्रीविष्णु के सर्वप्रथम अवतार माने जाते हैं। एक बार सनकादि मुनि भगवान के दर्शन करने हेतु जब वैकुंठ पधारे, तो जय-विजय ने उनकी हंसी उड़ाते हुए बेंत अड़ाकर उन्हें भीतर जाने से रोक लिया। इस अपमान से क्रोधित होकर सनकादि मुनियों ने उन्हें तीन जन्मों तक राक्षस योनी में जन्म लेने का शाप दे दिया। हालांकि, भूल की अनुभूति होने पर उन्होंने सनकादि मुनियों से क्षमा मांग ली, जिसके बाद, सरल हृदय, शांतचित्त और आत्मस्थ सनकादि मुनियों ने जय-विजय से कहा कि तीनों जन्मों में तुम्हारा अंत स्वयं भगवान श्रीहरि करेंगे। इस प्रकार, तीन जन्मों के बाद तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी।
हिरण्यकश्यप का कठोर तप
सनकादि मुनियों द्वारा शाप मिलने के कारण सतयुग में जय-विजय को मृत्यु लोक यानी पृथ्वी पर दक्ष प्रजापति की पुत्री दिति और ऋषि कश्यप के पुत्र बनकर जन्म लेना पड़ा। तब उनका नाम हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप था। हिरण्याक्ष अत्यंत विशालकाय एवं हिंसक प्रवृत्ति का था। एक बार वह संपूर्ण पृथ्वी वासियों पर तरह-तरह के अत्याचार करने लगा, जिसके बाद उसके अत्याचारों से पृथ्वी एवं धर्म की रक्षा हेतु भगवान श्रीहरि विष्णु ने ‘वाराह’ का रूप धारण कर उसका वध किया। अपने भाई की मृत्यु से अत्यंत क्रोधित एवं प्रतिशोध की प्रचंड ज्वाला में धधकता हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने हेतु वर्षों तक कठोर तप किया, ताकि अजेय होने का वरदान प्राप्त कर वह भगवान श्रीहरि विष्णु से प्रतिशोध ले सके।
स्वयं को भगवान घोषित
हिरण्यकश्यप भी हिरण्याक्ष की तरह ही भीमकाय होने के साथ-साथ अत्यंत ही क्रूर, अत्याचारी एवं हिंसक प्रवृत्ति का था। हालांकि, उसकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उसे वरदान दिया कि उसकी हत्या न तो दिन में और न रात में, न तो धरती पर और न आकाश में, न अस्त्र से न शस्त्र से, न किसी मनुष्य से और न ही किसी पशु अथवा देवता के द्वारा हो सकेगी। ब्रह्मा जी अजेय होने का वरदान पाकर हिरण्यकश्यप अपनी प्रजा पर अत्याचार करने लगा। उसने स्वर्ग पर अपना आधिपत्य कर लिया और लोकपालों को हराकर स्वयं ही संपूर्ण लोकों का अधिपति बन गया। तत्पश्चात उसने घोषणा कर दी कि वही इस पूरे संसार का भगवान है, इसलिए सभी लोग केवल उसकी ही पूजा करें।
प्रह्लाद से चुनौती
दैत्यों के राजा हिरण्यकश्यप की प्रचंड शक्ति और सामर्थ्य के आगे देवतागण तो लाचार और निरूपाय हो गए थे, लेकिन उसको जीवन की सबसे बड़ी चुनौती अपने ही पुत्र प्रह्लाद से मिली। दरअसल, प्रह्लाद अपने पिता की आसुरी प्रवृत्ति के विपरीत बहुत बड़े भग्वद्भक्त थे। वे रात-दिन आठों याम भगवान श्रीहरि विष्णु के नाम का जाप करते रहते थे।
नरसिंह अवतार
प्रह्लाद द्वारा अपने विरुद्ध व्यवहार करने से क्रुद्ध हिरण्यकश्यप ने पहले तो उन्हें समझाया, किंतु प्रह्लाद पर अपनी बातों का कोई प्रभाव न पड़ता देख उसने उन्हें मारने की अनेक कोशिशें कीं। अंततः ईश्वर कृपा से वह घड़ी भी आई, जब भगवान श्रीहरि विष्णु ने लोकमंगलार्थ एवं धर्म के रक्षार्थ खम्भे से नरसिंह रूप (आधा नर एवं आधा सिंह) में प्रकट होकर हिरण्यकश्यप को अपनी जंघा पर लिटाकर अपने ही नाखूनों से चीरकर मार डाला, जिससे संपूर्ण लोकों में शान्ति और धर्म की पुनः स्थापना हो पाई थी। तत्पश्चात नरसिंह भगवान ने अपने भक्त प्रह्लाद को गोद में उठाया और प्यार करके उनसे वरदान मांगने को कहा। भक्त प्रह्लाद ने तब कहा, ‘आप मेरे सच्चे भगवान हैं। यदि आप मुझे कोई वरदान देना चाहते हैं, तो कृपया मुझे आशीर्वाद दें।’
पूजा-आराधना
नरसिंह जयंती को देश भर में ‘भगवान नरसिंह प्रकटोत्सव’ के रूप में मनाया जाता है। वहीं, दक्षिण भारत में वैष्णव संप्रदाय के लोग इनकी पूजा संकट के समय रक्षा करने वाले देवता के रूप में करते हैं। मान्यताओं के अनुसार जो भक्त नरसिंह जयंती का व्रत रखकर विधिपूर्वक पूजा-आराधना, आरती, हवन तथा क्षमा प्रार्थना कर निर्मल मन से नरसिंह भगवान का ध्यान करते हैं, उनके कष्टों को दूर करने के लिए भगवान स्वयं ही प्रकट होते हैं।

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