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अंधेरे में हुई गुम रोशनी की कहानी

04:00 AM Jul 03, 2025 IST
अंधेरे में हुई गुम रोशनी की कहानी
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शमीम शर्मा

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एक समय था जब अंधेरे से लड़ने के लिए हमारे पास आले या खूंटी पर लटकी लालटेन हुआ करती। इसकी रोशनी में खाना पकता था, पूरा परिवार खाता था, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई होती, मां के हाथों फटे कपड़ों की उधड़न को ठीक करने और स्वेटरों की बुनाई का काम हुआ करता। जी हां, वही लालटेन-पीतल या टीन की बनी, ऊपर शीशे का कवच और भीतर तेल में भीगी बाती जो हवा की फुफकार में भी टिमटिमाती रहती थी। अब लालटेन खुद अंधेरे में गुम है। लालटेन, वो चीज जो एक दौर में हर घर की शान होती थी- चाहे वह झोपड़ी हो या हवेली। शाम होते ही जैसे ही वो लौ जलती, घर की दीवारों पर साये नाचने लगते थे। इसकी रोशनी केवल आंखों तक नहीं जाती थी, दिल तक उतरती थी।
दादी की कहानियां लालटेन की रोशनी में सुनाई जाती थीं। जब बिजली गुल होती तो पूरा घर लालटेन की ओर देखता जैसे कोई अंतिम आशा हो। लालटेन की हालत आजकल उस बुजुर्ग दादा जैसी है जो कभी घर का मुखिया था, अब कोने में बैठा पुरानी बातें दोहराता है और कोई सुनता नहीं।
लालटेन कहां गई? न वो दुकान पर मिलती है, न किसी गली-मोहल्ले में दिखाई देती है।
मोबाइल की टॉर्च, चार्जेबल एलईडी, सोलर लाइट्स और इनवर्टर की बदौलत अब किसी को लालटेन की जरूरत नहीं पड़ती। आधुनिकता ने वो सब कुछ मिटा दिया जो कभी रोजमर्रा की जरूरत थी। जलती थी धीमे, मगर रिश्ते रोशन कर देती थी।
बेशक एलईडी बल्ब, ट्यूब लाइट और स्मार्ट लाइट्स सुविधाजनक हैं। लेकिन सवाल ये है कि क्या हमने सिर्फ लालटेन की लौ को खोया है या उसके साथ सादगी और साथ बैठने का इंसानी जुड़ाव भी खो दिया है? आज रोशनी के कई माध्यम हैं पर अंधेरा बढ़ा है। अब लालटेन शादी के थीम डेकोर में मिलती है या फिर कैफे के कॉर्नर में एक कोने में टंगी होती है। उसकी लौ नहीं जलती, पर ‘एस्थेटिक’ ज़रूर लगती है। बस, बेचारी फोटो खींचने का सामान बनकर रह गई है।
लालटेन का जाना सिर्फ एक चीज का गायब होना नहीं है। ये उस पूरे दौर का अंत है जहां कम साधनों में ज्यादा अपनापन था। आज रोशनी ज्यादा है, लेकिन आंखें फिर भी थकी-थकी सी हैं। ऐसे भी लोग हुए हैं जो स्वयं लालटेन की तरह जलकर औरों को रोशन किया करते।
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एक बर की बात है अक बिजली का बिल देखकै रामप्यारी बोल्ली- रामजी करै लालटेन का जमाना फेर आ ज्यै। नत्थू बोल्या- तन्नै कुण रोकै है, लिया लालटेन। रामप्यारी बोल्ली- तेल के तेरे कान म्हं तै काढूंगी?

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